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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (२) झूठ न बोलने पर भी दूसरे व्यक्ति पर झूठ बोलने का कलङ्क लगाना। (३) चोरी न करने पर भी चोरी का दोष मढ़ना। (४) ब्रह्मचर्य का भंग न करने पर भी उस के भंग का दोष लगाना। (५) किसी साधु के लिए झूठमूठ कह देना कि यह क्लीब (हीजड़ा) है या पुरुष नहीं है। (६) किसी साधु के लिए यह कहना कि यह पहिले दास था और इसे अमुक व्यक्ति ने मोल लिया था।
____ (वृहत्कल्प उद्देशा ६) ४६१-हिंसा के छः कारण ___ छः कारणों से जीव कर्म-बन्ध का हेतु रूप छः काय का
आरम्भ करता है। (१) जीवन निर्वाह के लिये (२) लोगों से प्रशंसा पाने के लिये (३) लोगों से सन्मान पाने के लिये (४) अन्न-पान वस्त्र आदि से सत्कार पाने के लिये (५) जन्म मरण से छूट कर मुक्ति के लिये (६) दुःखों का नाश कर सुख पाने के लिये ।
(आचारांग प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन १ उद्देशा ५ सूत्र ४६) ४६२-जीव निकाय छः
निकाय शब्द का अर्थ है राशि । जीवों की राशि को जीवनिकाय कहते हैं । यही छः काय शब्द से भी प्रसिद्ध हैं। शरीर नाम कर्म के उदय से होने वाली औदारिक और वैक्रिय पुद्गलों की रचना और वृद्धि को काय कहते हैं । काय के भेद से जीव भी छः प्रकार के हैं । जीव निकाय के छः भेद इस प्रकार हैं