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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
से आयु पूरी करके जीव स्वकृत कर्मानुसार चारों गतियों में जाते हैं और कई जीव सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त होकर सकल दुःखों का अन्त कर देते हैं अर्थात् सिद्ध गति को प्राप्त करते हैं। ___ वर्तमान अवसर्पिणी के इस आरे में तीन वंश उत्पन्न हुए। अरिहन्तवंश, चक्रवर्तीवंश और दशारवंश । इसी आरे में तेईस तीर्थकर, ११ चक्रवर्ती, ६ बलदेव, ह वासुदेव और ६ प्रतिवासुदेव उत्पन्न हुए। दुःख विशेष और सुख कम होने से यह पारा दुषम सुषमा कहा जाता है। (५) दुषमा-पाँचवां दुषमा आरा इक्कीस हजार वर्ष का है। इस बारे में मनुष्यों के छहों संहनन तथा छहों संस्थान होते हैं। शरीर की अवगाहना ७ हाथ तक की होती है। आयु जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट सौ वर्ष झाझेरी होती है । जीव स्वकृत कर्मानुसार चारों गतियों में जाते हैं । चौथे बारे में उत्पन्न हुआ कोई जीव मुक्ति भी प्राप्त कर सकता है , जैसे जम्बूस्वामी । वर्तमान पंचम आरे का तीसरा भाग बीत जाने पर गण (समुदायजाति) विवाहादि व्यवहार, पाखण्डधर्म, राजधर्म, अग्नि और अग्नि से होने वाली रसोई आदि क्रियाएँ, चारित्रधर्म और गच्छ व्यवहार-इन सभी का विच्छेद हो जायगा। यह आरा दुःख प्रधान है इसलिए इसका नाम दुषमा है । (६) दुषम दुषमा--अवसर्पिणी का दुषमा आरा बीत जाने पर अत्यन्त दुःखों से परिपूर्ण दुषम दुषमा नामक छठा आरा प्रारम्भ होगा। यह काल मनुष्य और पशुओं के दुःखजनित हाहाकार से व्याप्त होगा । इस आरे के प्रारम्भ में धृलिमय भयङ्कर आंधी चलेगी तथा संवर्तक वायु बहेगी। दिशाएँ धूलि से भरी होंगी इसलिए प्रकाश शून्य होंगी । अरस, विरस, क्षार,खात, अग्नि,