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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
करने लगे। अपने विवादों का निपटारा कराने के लिये उन्होंने सुमति को स्वामीरूप से स्वीकार किया। ये प्रथम कुलकर थे। इनके बाद क्रमशः चौदह कुलकर हुए। पहले पांच कुलकरों के शासन में हकार दंड था । छठे से दसवें कुलकर के शासन में मकार तथा ग्यारहवें से पन्द्रहवें कुलकर के शासन में धिक्कार दंड था । पन्द्रहवें कुलकर ऋषभदेव स्वामी थे। वे चौदहवें कुलकर नाभि के पुत्र थे। माता का नाम मरुदेवी था।ऋषभदेव इस अवसर्पिणी के प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थकर और प्रथम धर्मचक्रवर्ती थे। इनकी आयु चौरासी लाख पूर्व थी । इन्होंने बीस लाख पूर्व कुमारावस्था में बिताए और
सठ लाख पूर्व राज्य किया। अपने शासन काल में प्रजा हित के लिए इन्होंने लेख, गणित आदि ७२ पुरुष कलाओं और ६४ स्त्री कलाओं का उपदेश दिया। इसी प्रकार १०० शिल्पों और असि, मसि और कृषि रूप तीन कर्मों की भी शिक्षा दी।सठ लाख पूर्व राज्य का उपभोग कर दीक्षा अङ्गीकार की। एक वर्ष तक छद्मस्थ रहे । एक वर्ष कम एक लाख पूर्व केवली रहे । चौरासी लाख पूर्व की आयुष्य पूर्ण होने पर निर्वाण प्राप्त किया। भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत महाराज इस
आरे के प्रथम चक्रवर्ती थे। (४) दुषम सुषमा-यह आरा बयालीस हजार वर्ष कम एक कोडाकोड़ी सागरोपम का होता है। इस में मनुष्यों के छहों संहनन और छहों संस्थान होते हैं । अवगाहना बहुत से धनुषों की होतो है और आयु जघन्य अन्तर्मुहूत्ते, उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व की होती है। एक पूर्व सत्तर लाख करोड़ वर्ष और छप्पन हजार करोड़ वर्ष (७०५६००००००००००) का होता है। यहाँ