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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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पसलियाँ होती हैं। माता पिता बच्चों का ६४ दिन तक पालन पोषण करते हैं। दो दिन के अन्तर से आहार की इच्छा होती है। यह
आराभी सुरवपूर्ण है। शेष सारी बातें स्थूलरूप से पहले आरे जैसी जाननी चाहिएं। अवसर्पिणी काल होने के कारण इस बारे में पहले की अपेक्षा सब बातों में क्रमशः हीनता होती जाती है । (३) सुषम दुषमा-सुप्तम दुषमा नामक तीसरा आरा दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है । इसमें दूसरे आरे की तरह सुख है परन्तु साथ में दुःख भी है । इस आरे के तीन भाग हैं । प्रथम दो भागों में मनुष्यों की अवगाहना एक कोस की और स्थिति एक पल्योपम की होती है। इनमें युगलिए उत्पन्न होते हैं जिनके ६४ पसलियाँ होती हैं । माता पिता ७६ दिन तक बच्चों का पालन पोषण करते हैं । एक दिन के अन्तर से आहार की इच्छा होती है। पहले दूसरे आरों के युगलियों की तरह ये भी छींक और जंभाई के आने पर काल कर जाते हैं और देवलोक में उत्पन्न होते हैं। शेष विस्तार स्थूल रूप से पहले दूसरे आरों जैसा जानना चाहिए।
सुषम दुषमा आरे के तीसरे भाग में छहों संहनन और छहों संस्थान होते हैं । अवगाहना हजार धनुष से कम रह जाती है। आयु जघन्य संख्यात वर्ष सौर उत्कृष्ट असंख्यात वर्ष की होती है । मृत्यु होने पर जीव स्वकृत कर्मानुसार चारों गतियों में जाते हैं। इस भाम में जीव मोक्ष भी जाते हैं।
वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे आरे के तीसरे भाग की समाप्ति में जब पल्योपम का आठवां भाग शेष रह गया उस समय कल्पवृक्षों की शक्ति कालदोष से न्यून हो गई । युगलियों में द्वेष और कषाय की मात्रा बढ़ने लगी और वे आपस में विवाद