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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
और वर्तमान तीनों काल के समय इकडे करने पर जो संख्या हो उससे अनन्त गुणे जीव एक एक निगोद में हैं।
प्रत्येक संसारी जीव के असंख्यात प्रदेश हैं। एक एक प्रदेश में अनन्त कर्म वर्गणाएं लगी हुई हैं । एक एक वर्गणा में अनन्त पुद्गल परमाणु हैं । इस तरह अनन्त परमाणु जीव के साथ लगे हुए हैं। उनसे भी अनन्त गुणे पुद्गल परमाणु जीव से अलग हैं । “गोला य असंखिजा, असंखनिगोयत्रो हवइ गोलो। इक्विक्वम्मि निगोए, अणंतजीवा मुणेयव्वा ॥"
अर्थात् लोक में असंख्यात गोले हैं । एक एक गोले में असंख्यात निगोद हैं और प्रत्येक निगोद में अनन्त जीव हैं। “सत्तरस समहिया किर, इगाणुपाणम्मि हुंति खुडुभवा । सगतीस सय तिहुत्तर, पाणू पुण इगमुहुत्तम्मि ॥" V तात्पर्य-पूर्वोक्त निगोद के जीव मनुष्य के एक श्वास में कुछ अधिक सतरह जन्म मरण करते हैं । एक मुहूर्त में मनुष्य के ३७७३ श्वासोच्छ्वास होते हैं। "पणसहि सहस्स पण सय, सत्तीसा इगमुहुत्त खुडभवा ।
प्रावलियाणं दो सय, छप्पन्ना एग खुडभवे ॥" __ अर्थात् निगोद के जीव एक मुहूर्त में ६५५३६ भव करते हैं । निगोद का एक भव २५६ श्रावलियों का होता है। यह परिमाण छोटे से छोटे भव का कहा गया है। निगोद वाले जीव
से कम आयुष्य और किसी जीव की नहीं होती। • "अस्थि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसाइपरिणामो। उववज्जंति चयंति य, पुणोवि तस्थेव तस्थेव ॥" अर्थ-निगोद में ऐसे अनन्त जीव हैं, जिन्होंने कभी त्रस