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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
आदि पर्याय को प्राप्त नहीं किया है वे हमेशा मरकर वहीं उत्पन्न होते रहते हैं।
निगोद के दो भेद हैं-(१) व्यवहार राशि (२) अव्यवहार राशि। जो जीव एक बार बादर एकेन्द्रिय या त्रसपने को प्राप्त करके फिर निगोद में चला जाता है. वह व्यवहार राशि कहलाता है। जिस जीव ने निगोद से बाहर निकल कर कभी बादर एकेन्द्रियपना या त्रसपना प्राप्त नहीं किया, अनादि काल से निगोद में ही जन्म मरण कर रहा है वह अव्यवहार राशि है। अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आया हुआ जीव फिर सूक्ष्म निगोद में जा सकता है किन्तु वह व्यवहार राशि ही कहा जायगा। (सेन प्रश्न ४ उल्लाप्य)। एक समय में जितने जीव मोक्ष में जाते हैं ठीक उतने ही जीव उसी समय अव्यवहार राशि से निकल कर व्यवहार राशि में आ जाते हैं। कभी कभी जब भव्य जीव कम निकलते हैं तो एक दो अभव्य जीव भी वहां से निकल आते हैं। इसलिए व्यवहार राशि के जीव कभी कम ज्यादा नहीं होते। पूर्वोक्त निगोदों के जो गोले लोकाकाश के भीतर हैं, उनके जीव छहों दिशाओं से आए हुए पुद्गलों को आहारादि के लिये ग्रहण करते हैं । इसलिए वे सकल गोले कहलाते हैं। जो गोले लोकाकाश के अन्तिम प्रदेशों में हैं वे तीन दिशाओं से आहार ग्रहण कर सकते हैं , इसलिए विकल गोले कहे जाते हैं । साधारण वनस्पति काय स्थावर को ही सूक्ष्म निगोद कहते हैं, दूसरे चार स्थावरों को नहीं । सूक्ष्म जीव सारे लोक में भरे हुए हैं।
सूक्ष्म निगोद में अनन्त दुःख हैं। जिनकी कल्पना करने के लिये कुछ उदाहरण दिये जाते हैं । तेतीस सागरोपम के जितने