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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
का ग्रहण करवाता है । जीव द्रव्य में उपयोग रूप क्रिया है। इस तरह ये छहों द्रव्य अपने २ स्वभावानुसार क्रिया करते हैं। (४) प्रमेयत्व-प्रमाण का विषय होना प्रमेयत्व है । सभी पदार्थ केवल ज्ञान रूप प्रमाण के विषय हैं, इसलिये प्रमेय हैं।
द्रव्यों की संख्या __ पूर्वोक्त छहों द्रव्यों को केवली भगवान ने अपने ज्ञान से देख कर उनकी संख्या इस प्रकार बतलाई है :-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, और आकाशास्तिकाय एक एक हैं। जीव द्रव्य अनन्त हैं, उनके भेद इस प्रकार हैं:-संज्ञी मनुष्य संख्यात और असंज्ञी मनुष्य असंख्यात । नरक के जीव असंख्यात, देवता असंख्यात, तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय असंख्यात, बेइन्द्रिय जीव असंख्यात, तेइन्द्रिय असंख्यात, चौरिन्द्रिय असंख्यात, पृथ्वी काय असंख्यात, अप्काय असंख्यात, तेउकाय असंख्यात, वायुकाय असंख्यात और प्रत्येक वनस्पतिकाय भी असंख्यात है । इनसे सिद्ध जीव अनन्त गुणे हैं।
निगोद अनन्त जीवों के पिण्ड भूत एक शरीर को निगोद कहते हैं। सिद्धों से बादर निगोद के जीव अनन्त गुणे हैं । कन्द, मूल, अदरक, गाजर आदि वादर निगोद हैं । सुई के अग्र भाग में बादर निगोद के अनन्त जीव रहते हैं । सूक्ष्मनिगोद के जीव उनसे भी अनन्त गुणे हैं । लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने सूक्ष्म निगोद के गोले हैं । एक एक गोले में असंख्यात निगोद हैं । एक एक निगोद में अनन्त जीव हैं। भूत, भविष्यत