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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(३) द्रव्यत्व - सब द्रव्य भिन्न २ क्रिया करते हैं । भिन्न २ क्रिया का करना ही द्रव्यत्व है। जैसे धर्मास्तिकाय की अर्थक्रिया है चलने में सहायता करना। यह गुण उसके प्रत्येक प्रदेश में है ।
द्रव्यों की अर्थक्रिया शंका-लोकान्त (सिद्धिक्षेत्र) में जो धर्मास्तिकाय है वह सिद्ध जीवों के चलने में सहायता नहीं पहुँचाता, फिर प्रत्येक प्रदेश में गतिसहायता गुण कैसे सिद्ध हो सकता है ?
समाधान-सिद्ध जीव अक्रिय हैं। धर्मास्तिकाय का स्वभाव है कि जो चलता हो उसको गति में सहायता करना । जो स्वयं गति नहीं करता उसको जबर्दस्ती चलाना इसका स्वभाव नहीं है । सिद्ध क्षेत्र में भी जो निगोद के जीव और पुद्गल हैं उन की गति क्रिया में वहां रहे हुए धर्मास्तिकाय के प्रदेश अवश्य सहायता करते हैं, इसलिए सिद्ध क्षेत्र में जहां धर्मास्तिकाय है वहां उसकी क्रिया भी सिद्ध है। इसी तरह अधर्मास्तिकाय स्थिति क्रिया में सहायता पहुँचाता है । आकाश द्रव्य सब द्रव्यों को अवगाहना देने की क्रिया करता है।
शंका-अलोकाकाश में अन्य कोई भी द्रव्य नहीं है, फिर उसमें अवकाश देने की क्रिया कैसे घट सकेगी ?
समाधान–अलोकाकाश में भी लोकाकाश के समान ही अवकाश देने की शक्ति है। वहां कोई अवकाश लेने वाला द्रव्य नहीं है, इसीसे वह क्रिया नहीं करता। पुद्गल द्रव्य मिलना
और बिखरना (अलग होना) रूप क्रिया करता है। काल द्रव्य वर्तना रूप क्रिया करता है,अर्थात् दूसरे द्रव्यों को उत्तरोत्तर पर्याय