________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
हैं । द्रव्यों का प्रदेश सहित होना प्रदेशवत्व गुण है । प्रदेशवत्व गुण के कारण द्रव्य का कोई न कोई आकार अवश्य होता है ।
(द्रव्यानुयोग तर्कणा) 'आगमसार' में इनका विस्तार इस प्रकार दिया गया है:सब द्रव्यों में छः सामान्य गुण हैं-१ अस्तित्व ,२ वस्तुत्व, ३ द्रव्यत्व, ४ प्रमेयत्व, ५ सत्व और ६ अगुरुलघुत्व । इनका स्वरूप संक्षेप से इस प्रकार है(१) अस्तित्व-छहों द्रव्य अपने गुण, पर्याय और प्रदेश की अपेक्षा सत्-विद्यमान हैं । इनमें धर्म,अधर्म,आकाश और जीव इन चार द्रव्यों के असंख्यात प्रदेश इकट्ठे होकर स्कन्ध वनते हैं। पुद्गल में भी स्कन्ध बनने की शक्ति है । इससे ये पांचों द्रव्य अस्तिकाय हैं । काल अस्तिकाय नहीं है,क्योंकि काल के समय एक दूसरे से नहीं मिलते । एक समय का नाश होने पर ही दूसरा समय आता है । तात्पर्य यह है कि जिस द्रव्य के प्रदेश समूहरूप हों वही अस्तिकाय है। अस्तिकाय शब्द का अर्थ है प्रदेश समूह । काल के समयों का समूह नहीं हो सकता, क्योंकि वे इकहे नहीं होते। इसलिए काल अस्तिकाय नहीं है। (२) वस्तुत्व-वस्तुत्व का अर्थ है भिन्न २ वस्तु होना। सब द्रव्य एक ही क्षेत्र में इकटे रहने पर भी एक दूसरे से अपने अपने गुणों द्वारा भिन्न हैं । एक आकाश प्रदेश में धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, जीवों के अनन्त प्रदेश और पुद्गल के अनन्त परमाणु रहे हुए हैं, परन्तु अपने अपने स्वभाव में रहते हुए एक दूसरे की सत्ता में नहीं मिलते। इसी से उनकी स्वतन्त्र वस्तुता (वस्तुपना) है।