________________ अन्तिम मंगल क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः। काले कालेच वृष्टिं वितरतु मघवा व्याधयो यान्तुनाशम्॥ दुर्भिक्षंचौरमारीक्षणमपिजगतांमास्म भूज्जीवलोके। जैनेन्द्रं धर्मचक्रप्रसरतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि // 1 // प्रजा में शान्ति फैले, राजा धर्मनिष्ठ और बलवान् बने, हमेशा ठीक समय पर दृष्टि हो, सब व्याधियाँ नष्ट हो जायँ, दुर्भिक्ष, डकैती, महामारी आदि दुःख संसार के किसी जीव को न हों, तथा जिनेन्द्र भगवान् का चलाया हुआ, सबको सुख देने वाला धर्मचक्र सदा फैलता रहे // _ इति शुभमस्तु | सेठिया प्रिटिङ्ग प्रेस 21-7-1941