________________ 412 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला संक्षेप से नय के दो भेद हैं- द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक द्रव्य अर्थात् सामान्य को विषय करने वाले नय को द्रव्यार्थिक नय कहते हैं और पर्याय अर्थात् विशेष को विषय करने वाले नय को पर्यायार्थिकाद्रव्यार्थिक नय के तीन भेद हैं-नैगम, संग्रह और व्यवहार।पर्यायार्थिक नय केचार भेद हैं-ऋजुसूत्र,शब्द, समभिरूढ और एवंभूत। श्री सिद्धसेन आदि तार्किकों के मत को मानने वाले द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद मानते हैं, परन्तु जिनभद्रगणि के मत का अनुसरण करने वाले सैद्धान्तिक द्रव्यार्थिक नय के चार भेद मानते हैं। ( अनुयोगद्वार सूत्र 152 ) (प्रवचन * गाथा 848 (विशेषावश्यक गाथा 1550 ) (1) नैगम नय- दो पर्यायों, दो द्रव्यों और द्रव्य और पर्याय की प्रधान और गौण भाव से विवक्षा करने वाले नय को नैगम नय कहते हैं। नैगम नय अनेक गमों अर्थात् बोधमार्गों (विकल्पों) से वस्तु को जानता है। (रत्नाकरावतारिका अध्याय 7 सूत्र 7) . जो अनेक मानों से वस्तु को जानता है अथवा अनेक भावों से वस्तु का निर्णय करता है उसे नैगम नय कहते हैं। ____ निगम नाम जनपद अर्थात् देश का है। उस में जोशब्द जिस अर्थ के लिये नियत है, वहाँ पर उस अर्थ और शब्द के सम्बन्ध को जानने का नाम नैगम नय है अर्थात् इस शब्द का यह अर्थ है और इस अर्थ का वाचक यह शब्द है, इस प्रकार वाच्य वाचक के सम्बन्ध के ज्ञान को नैगम नय कहते हैं। (तत्त्वार्थ सूत्र 01) __ 'तत्र संकल्पमात्रस्य ग्राहको नैगमो नयः' निगम का अर्थ है संकल्प जो निगम अर्थात् संकल्प को विषय करे वह नैगम नय कहा जाता है। जैसे- 'कौन जा रहा है "मैं जा रहा हूँ' यहाँ पर कोई जा नहीं रहा है किन्तु जाने का