________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह विशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, और यथाख्यात नाम के तीन संयम, केवलज्ञान और मोक्ष जाने की शक्ति / साधु अचेल परिषह का जीतने वाला होता है। इससे भी वस्त्रों का छोड़ देना सिद्ध नहीं होता / यदि वस्त्र छोड़ने पर ही अचेल परिषह जीता जा सकता है तो दिगिछा (क्षुत् ) परिषह भी भोजन छोड़ देने पर ही जीता जा सकेगा। कपड़े होने पर भी मूर्छा न होने से साधु अचेल कहे जाते हैं / उनके कपड़े बहुत जीर्ण और अल्पमूल्य वाले होते हैं, इस लिये भी वे अचेल कहे जाते हैं। तीन कारणों से वस्त्र धारण करने चाहिए। इस बात से तो हमारा ही मत पुष्ट होता है। ___ इसलिए यह सिद्ध हो गया कि शास्त्र और युक्ति कोई भी वस्त्रत्याग के पक्ष में नहीं है। पात्र न रखने से एषणासमिति का सम्यक् पालन नहीं हो सकता। इसलिए पात्र भी रखने चाहिए। निक्षेपणादान समिति, व्युत्सर्ग समिति और भाषा समिति का पालनरजोहरण और मुखवत्रिका के बिना नहीं हो सकता। अतः समिति और महाव्रतों का ठीक पालन करने के लिए वस्त्रादि रखना आवश्यक है। यह संवाद उत्तराध्ययन के दूसरे अध्ययन के अचेल परिषह में भी दिया गया है। स्त्री मुक्ति के लिए ३६वें अध्ययन की बृहद् टीका देखनी चाहिए। (विशेषावश्यक भाष्य गाथा 2300- 2620) 562- नय सात प्रमाण से जानी हुई अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म को मुख्य रूप से जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं। विस्तार से तो नय के अनेक भेद हैं, क्योंकि एक वस्तु को कहने वाले जितने वाक्य हैं, उतने ही नय हो सकते हैं, परन्तु