________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह . 413 केवल संकल्प ही किया है / इसलिये नैगम नय की अपेक्षा से यह कह दिया गया है कि मैं जा रहा हूँ। (न्याय प्रदीप) शब्दों के जितने और जैसे अर्थ लोक में माने जाते हैं, उन को मानने की दृष्टि नैगम नय है। इस दृष्टि से यह नय अन्य सभी नयों से अधिक विषय वाला है। नैगम नय पदार्थ को सामान्य,विशेष और उभयात्मक मानता है। तीनों कालों और चारों निक्षेपों को मानता है एवं धर्म और धर्मी दोनों का ग्रहण करता है। ___ यह नय एक अंश उत्पन्न होने से ही वस्तु को सम्पूर्ण मान लेता है / जैसे किसी मनुष्य को पायली लाने की इच्छा हुई। तब वह जंगल में काष्ठ लाने के लिए गया। रास्ते में उसे किसी ने पूछा, 'कहाँ जाते हो' उसने उत्तर दिया, पायली लाने के लिए जाता हूँ / बिना ही लकड़ी प्राप्त किए और उससे बिना ही पायली बनाए केवल उसके लिए विचार अथवा प्रवृत्ति मात्र को ही उसने पायली कह दिया / इस प्रकार वस्तु के अंश को सम्पूर्ण वस्तु मानना नैगम नय का अभिप्राय है। नैगम नय के दो भेद हैं, क्योंकि शब्द का प्रयोग दो ही प्रकार से हो सकता है / एक सामान्य अंश की अपेक्षा से और दूसरा विशेष अंश की अपेक्षासे / सामान्य अंश का सहारा लेकर प्रवृत्त होने वाले नय को समग्रग्राही नैगम नय कहते हैं / जैसे- चांदी का या सोने का अथवा मिट्टी का या पीतल का और सफेद, काला इत्यादि भेद न करके यह नय घट मात्र को ग्रहण करता है। __ विशेष अंश का आश्रय लेकर प्रवृत्त होने वाले नय को देशग्राही नैगम नय कहते हैं। जैसे घट को मिट्टी का या पीतल का इत्यादि विशेष रूप से ग्रहण करना।