________________ 386 श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला कितनी आयु बाकी है। यविकों में आयुश्रेणी पर ध्यान लगा कर आचार्य ने जान लिया, यह मनुष्य या व्यन्तर नहीं है परन्तु दो सागरोपम की आयुवाला सौधर्म देवलोक का स्वामी है। बुढ़ापे के कारण नीचे गिरी हुई भौहों को हाथ से ऊपर उठाते हुए आचार्य ने कहा- आप शक्रेन्द्र हैं। यह सुनकर देवराज बहुत प्रसन्न हुआ। महाविदेह क्षेत्र की सारी बात कह सुनाई और निगोद के विषय में पूछा। आर्यरक्षित ने सब कुछ विस्तार से समझा दिया / सुरपति ने जब जाने की आज्ञा मांगी तो आचार्य ने कहा थोड़ी देर ठहरो / साधुओं को आने दो / जिससे तुम्हें देखकर 'आज कल भी देवेन्द्र आते हैं। यह समझते हुए वे धर्म में दृढ हों। देवराज ने उत्तर दिया-भगवन् ! मैं ऐसा करने के लिए तैयार हूँ किन्तु मेरा स्वाभाविक दिव्य रूप देखकर कम शक्ति होने से वे निदान कर लेंगे।गुरु ने कहा-अच्छा तो अपने आगमन की सूचना देने वाला कोई चिह्न छोड जाओ। देवेन्द्र ने उस उपाश्रय का द्वार दूसरी दिशा में कर दिया / लौटकर आये हुए साधुओं ने विस्मित होते हुए द्वार के विषय में आचार्य से पूछा / सारा हाल सुनकर वे और भी विस्मित हुए। एक दिन विहार करते हुये वेदशपुर नगर में आए। उन्हीं दिनों मथुरा नगरी में एक नास्तिक आया। वह कहता था सभी वस्तुएं मिथ्या हैं। कुछ भी नहीं है। माता पिता भी नहीं हैं। कोई प्रतिवादी नहीं होने से संघ ने आर्यरक्षित के पास साधुओं को भेजा। वृद्धता के कारण स्वयं वहाँ पहुँचने में असमर्थ होने से आचार्य ने वादलब्धि वाले गोष्ठामाहिल को भेज दिया। उसने वहाँ जाकर वादी को जीत लिया। श्रावकों के आग्रह से उस का चतुर्मास भी वहीं हुआ।