________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह आचार्य आर्यरक्षित ने अपने पाट पर दुर्बलिका पुष्पमित्र को बिठाने का निश्चय किया किन्तु दूसरे सब साधु गोष्ठामाहिल या फल्गुरक्षित को आचार्य बनाना चाहते थे। एक दिन आचार्य ने सारे गच्छ को बुला कर कहा। देखो ! ये तीन घड़े हैं। एक में अनाज है, दूसरे में तेल और तीसरे में घी / उनको उल्टा कर देने पर अनाज सारा निकल जायगा। तेल थोड़ा सा घड़े में लगा रहेगा / घी बहुत सा रह जायगा। ___ मूत्रार्थ के सम्बन्ध में दुर्बलिका पुष्पमित्र के लिए मैं धान्यघट के समान रहा हूँ, क्योंकि उसने मेरा सारा ज्ञान ग्रहण कर लिया है। फल्गुरक्षित के प्रति मैं तैलघट के समान रहा हूँ, क्योंकि वह सारा ज्ञान ग्रहण नहीं कर सका।गोष्ठामाहिल के प्रति मैं घृतघट के समान रहा, क्योंकि बहुत सा सूत्रार्थ मैंने उसे बताया नहीं है। मेरे सारे ज्ञान को ग्रहण कर लेने से दुर्बलिका पुष्पमित्र ही तुम्हारा आचार्य बनना चाहिये। आचार्य आर्यरक्षित की इस बात को सभी ने स्वीकार कर लिया। ___ आचार्य ने दुर्बलिका पुष्पमित्र से कहा- फल्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल के साथ जो मेरा व्यवहार था वही तुम्हारा होना चाहिये। गच्छ से कहा-जो बर्ताव आप लोगों ने मेरे साथ रकरवा वही इसके साथ रखना। किसी बात के होने या न होने पर मैं तो रुष्ट नहीं होता था किन्तु यह उस बात को नहीं सह सकेगा।आपलोगों को इस के प्रति विनय रखनी चाहिये। इस प्रकार दोनों पक्षों को शिक्षा देकर आचार्य देवलोक पधार गए। गोष्ठामाहिल ने उस बात को सुना / मथुरा से आकर पूछा, आचार्य ने अपने स्थान पर किसे गणधर बनाया है ? धान्यघट वगैरह का सारा हाल लोगों से सुनकर वह बहुत दुखी हुआ। अलग उपाश्रय में ठहर कर दुर्बलिका पुष्पमित्र के पास उलाहना