________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 185 माता पिता के पास आए। आर्यरक्षित के उपदेश से माता पिता तथा मामा गोष्ठामाहिल वगैरह सभी परिवार के लोग दीक्षित हो गये / इस तरह दीक्षा देते हुए आर्यरक्षित के पास एक बड़ा गच्छ हो गया। उस गच्छ में दुर्बलिका पुष्पमित्र, घृत पुष्पमित्र और वस्त्र पुष्पमित्र नाम के तीन साधु थे / दुर्बलिका पुष्पमित्र को नौ पूर्षों का ज्ञान था। उस गच्छ में चार प्रधान पुरुष थे। दुर्बलिका पुष्पमित्र, विन्ध्य, फल्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल / एक दिन प्राचार्य के कहने से दुईलिका पुष्पमित्र विन्ध्य को वाचना दे रहे थे। नवम पूर्व पढ़ लेने पर भी गुणन न होने के कारण वह उन्हें विस्मृत हो गया ।आर्यरक्षित ने सोचा जब ऐसा बुद्धिमान भी सूत्रार्थ भूल रहा है तो सम्पूर्ण सूत्रों के अर्थ का उद्धार न हो सकेगा। यह सोचकर उन्होंने सूत्रार्थ को चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग नाम से चार विभागों में बांट दिया। प्रत्येक वस्तु पर होने वाले नयों के विवरण को रोक कर उसे सीमित कर दिया। ___ कुछ दिनों में घूमते हुए आर्यरक्षितमूरि मथुरा पहुँचे / वहाँ भूतगुहा वाले व्यन्तर गृह में ठहर गए / एक दिन महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमन्धर स्वामी के पास निगोद की वक्तव्यता सुनते हुए विस्मित होकर शक्रेन्द्र ने पूछाभगवन् ! क्या भरतक्षेत्र में भी इस समय निगोद के इस सूक्ष्म विचार को कोई जानता है और समझा सकता है ? भगवान् ने उत्तर दिया आयरक्षित ऐसी प्ररूपणा करते हैं। यह सुनकर आश्चर्यान्वित होता हुआ देवेन्द्र दूसरे साधनों के चले जाने परभक्तिपूर्वक आर्यरक्षित के पास वृद्ध ब्राह्मण के रूप में पाया। वन्दना करके आचार्य से पूछा-भगवन् ! मेरा रोगबढ़ रहा है इसलिए अनशन करना चाहता हूँ / कृपा करके बताइये मेरी