________________ 384 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पर फिर पत्थर ले आया।जीव के टुकड़े न हो सकने के कारण नो शब्द का अर्थ यहाँ पर देशनिषेध सम्भव नहीं है। इसलिये सर्वनिषेध को समझकर देव दुवारा पत्थर ले आया। नोअजीव मांगने पर शुक सारिकादि ले आया। इस प्रकार जीव विषयक पृच्छायें होने पर दो ही पदार्थ उपलब्ध हुए। जीव और अजीव / तीसरी कोई वस्तु न मिली। नोजीव नाम का कोई पदार्थ न मिलने पर रोहगुप्त शास्त्रार्थ में हार गया / सर्वज्ञ भगवान् महावीर के धर्म की जय हुई। रोहगुप्त शहर के बाहर निकाल दिया गया। कहा जाता है उसी ने बाद में वेशेषिक मत का प्रचार किया। उसके बहुत से शिष्य हो गये / वही मत आज तक चल रहा है। उस का नाम रोहगुप्त और गोत्र उलूक था। छह पदार्थ बताने से षडुलूक कहा जाता है। इसी आधार पर वैशेषिक दर्शन औलूक्य दर्शन कहा जाता है। (7) अबद्धिक-भगवान् महावीर की मुक्ति के पांचसौ चौरासी वर्ष बाद गोष्ठामाहिल नामक सातवां निहव हुआ। दशपुर नगर में सोमदेव नाम का ब्राह्मण रहता था / रुद्रसोमा नाम की उसकी स्त्री जैनमत को मानने वाली श्राविका थी! उनके रक्षित नामका चौदह विद्याओं में पारंगत पुत्र उत्पन्न हुआ। माता की प्रेरणा से उसने आचार्य तोसलिपुत्र के पास दीक्षा ले ली। यथाक्रम ग्यारहअङ्ग पढ़ लिए।बारहवाँ दृष्टिवाद भी जितना गुरु के पास था, पढ लिया / बाकी बचा हुआ आर्यवैर स्वामी से जान लिया। रक्षित नौ पूर्व और चौवीस यविकों में प्रवीण हो गया / कुछ दिनों के बाद माता के द्वारा भेजा हुआ फल्गुरक्षित नामक उसका भाई उसे बुलाने के लिए आया / वह भी आर्यरक्षित के पास दीक्षित हो गया। फिर दोनों भाई