________________ 372 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला गुरु दर्शन के लिए अन्तरञ्जिका में आया / उस दिन एक परिव्राजक लोहे की पत्ती से पेट बांधकर जम्बूवृक्ष की शाखा हाथ में लिए हुए उसी नगरी में घूम रहा था। किसी के पूछने पर वह उत्तर देता, मेरा पेट ज्ञान से बहुत अधिक भरा हुआ है / फूटने के डर से लोहे की पत्ती बांध रखी है। जम्बूद्वीप में मेरा कोई प्रतिवादी नहीं है। इस बात को बताने के लिए जम्बृक्ष की शाखा हाथ में ले रखी है। कुछ दिनों के बाद उस परिव्राजक ने ढिंढोरा पिटवाया 'दूसरों के सभी सिद्धान्त खोखले हैं / मेरा कोई भी प्रतिवादी नहीं है।' लोहे की पत्ती पेट पर बंधी होने से 'पोट्ट' तथा जम्बूक्ष की शाखा हाथ में होने के कारण 'शाल' इस प्रकार उसका नाम पोदृशाल पड़ गया। नगरी में घूमते हुए रोहगुप्त ने हिंढोरा और उसके साथ की घोषणासुनी / ' मैं इसके साथ शास्त्रार्थ करूँगा 'ऐसा कहकर उसने गुरु से बिना पूछे ही ढिंढोरा रुकवा दिया। आलोचना करते हुए उसने सारी घटना गुरु को सुनाई। प्राचार्य ने कहातुमने ठीक नहीं किया। उस परिव्राजक के सात विद्याएं सिद्ध हैं / शास्त्रार्थ में हार जाने पर वह उनका प्रयोग करता है / वे इस प्रकार हैं-वृश्चिकप्रधाना, सर्पप्रधाना, मूषकप्रधाना, मृगी, वराही, काकविद्या, पोताकी विद्या। रोहगुप्त ने कहा अब तो कुछ नहीं हो सकता / मैंने ढिंढोरा रुकवा दिया है / जो होगा वह देख लिया जायगा। ___ आचार्य ने कहा- यदि यही बात है तो उसकी विद्याओं को निष्फल करने के लिए सात विद्याएं तुम भी सीख लो। पढते ही तुम्हें सिद्ध हो जायँगी। उनके नाम ये हैं- मोरी, नकुली, विडाली, व्याघ्री, सिंही, उल्लूकी तथा उलावकी / इन्हें ग्रहण कर