________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ____373 के तुम परिव्राजक का दमन कर सकोगे।रोहगुप्त ने सारी विद्याएं सीख लीं। इनके सिवाय आचार्य ने उसे रजोहरण अभिमन्त्रित करके दिया और कहा यदि और कोई छोटा मोटा उपद्रव उसकी क्षुद्र विद्याओं के कारण उपस्थित हो तो उसके सिर पर रजोहरण घुमा देना / फिर तुम्हें देवता भी नहीं जीत सकता, उस सरीखे मनुष्य की तो बात ही क्या ? रोहगुप्त राजसभा में गया और कहा- यह शाखा वाला परिव्राजक क्या जानता है ? अपनी इच्छा से यह कोई पूर्व पक्ष करे / मैं उसका खंडन करूँगा / परिव्राजक ने सोचा, ये लोग चतुर होते हैं। इन्हीं का सम्मत पक्ष ले लेता हूँ। जिससे कि निराकरण न हो सके। परिव्राजक ने कहा-संसार में जीव और अजीव दो ही राशियाँ हैं, क्योंकि वैसा ही मालूम पड़ता है / जैसे शुभ और अशुभ दो राशियाँ। रोहगुप्त ने परिव्राजक को हराने के लिए अपने सिद्धान्त का भी खंडन शुरू किया। वह बोला यह हेतु असिद्ध है, क्योंकि जीव और अजीव के सिवाय नोजीव नाम की भी राशि मालूम पड़ती है / नारकी, तिर्यश्च आदि जीव हैं / परमाणु और घट वगैरह अजीव हैं। छिपकली की पूँछ नोजीव है। ये तीन राशियाँ हैं, क्योंकि वैसी ही उपलब्धि होती है। जैसे उत्तम मध्यम और अधम नामक तीन राशियाँ / इस प्रकार की युक्तियों से परिव्राजक निरुत्तर हो गया और रोहगुप्त की जीत हुई। परिव्राजक को क्रोध आगया। उसने वृश्चिक विद्या से रोहगुप्त का नाश करने के लिये विच्छू छोड़े। रोहगुप्त ने मोरी विद्या से मोरों को छोड़ दिया।मोरों द्वारा बिच्छू मारे जाने पर परिव्राजक ने सांपों को छोड़ा / रोहगुप्त ने नेवले छोड़ दिये / इसी तरह चूहों