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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
है वह छिन्न कहा जा सकता है ? जो भिद्यमान है वह भिन्न कहा जा सकता है ? जो दह्यमान है वह दग्ध कहा जा सकता है ? जो म्रियमाण है वह मृत कहा जा सकता है ? जो निर्जीयमाण है वह निजोणं कहा जा सकता है ?
उत्तर- हाँ गौतम १,चलता हा चलित कहा जा सकता है । यावत् निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण कहा सकता है।
शास्त्र का यह मत निश्चय नय की अपेक्षा है। जिस आदमी को एक कोस चलना है, उस के दस कदम चलने पर भी निश्चय नय से यह कहा जा सकता है कि वह चल चुका । क्योंकि उसने दस कदम की गति पूरी करली है। व्यवहार नय से उसे 'चल चुका' तभी कहा जायगा जब वह गन्तव्य स्थान को प्राप्त कर लेगा। स्याद्वाद दर्शन अपेक्षावाद है। वक्ता के अभिप्राय, नय या भिन्न भिन्न विवक्षाओं से दो विरोधी बातें भी सच्ची हो सकती हैं।
व्यवहार नय की एकान्त दृष्टि को लेकर जमाली भगवान् महावीर के मत को मिथ्या समझता है । उसका कहना है__ क्रियमाण कृत नहीं हो सकता । जो वस्तु पहले ही कृत अर्थात् विद्यमान है उसे फिर करने की क्या जरूरत ? इस लिए वह क्रिया का आश्रय नहीं हो सकती । पहले बना हुआ घट दुबारा नहीं बनाया जा सकता। अगर किए हुए को फिर करने की आवश्यकता हो तो क्रिया कभी समाप्त न होगी। क्रियमाण का अर्थ है जो क्रिया का आश्रय हो अर्थात् किया जाय और कृत का अर्थ है जो हो चुका । ये दोनों विरोधी हैं।
क्रियमाण को कृत (निष्पन्न) मान लेने पर मिट्टी भिगोना, चाक घुमाना आदि क्रियाएं व्यर्थ हो जायँगी क्योंकि घट तो क्रिया के प्रथम क्षण में ही निष्पन्न हो चुका ।