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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
चद्दर का एक कोना जल गया। उसने ढंक से कहा-श्रावक ! तुमने मेरी चद्दर जला दी । ढंक ने कहा- यह कैसे ? आप के सिद्धान्त सेतो जलती हुई वस्तु जली नहीं कही जा सकती। फिर मैंने आपकी चद्दर कैसे जलाई १
सुदर्शना को ध्यान आया । बात का पूरा निर्णय करने के लिये वह जमाली के पास गई। जमाली ने उस की कोई बात न मानी । सुदर्शना और दूसरे साधु उसे अकेला छोड़कर भगवान् महावीर के पास चले गए।
कुछ आचार्यों का कहना है कि सुदर्शना भगवान् की बहिन का नाम था और वह जमाली की माँ थी । अनवद्या भगवान् की पुत्री थी और जमाली की पत्नी ।
( हरिभद्रीयावश्यक १ विभाग पृष्ठ ३१३ ) जमाली के मत को स्पष्ट तथा तार्किक प्ररणाली से समझने के लिए विशेषावश्यकभाष्य (बृहद्वृत्ति) से कुछ बातें यहाँ दी जाती हैं ।
भगवती सूत्र के शतक १ उद्देशा १ में नीचे लिखा पाठ आया हैप्रश्न- से पूर्ण भंते! चलमाणे चलिए ? उदीरिज्जमाणे उदीरिए ? वेइज्जमाणे वंइए ? पहिजमाणे पहीणे ? छिज्जमा छिन्न ? भिमाणे भिन्ने ? उज्झमाणे दड्ढे ? मिज्जमामडे ? निज्जरिज्जमाणे निजिरणे ?
उत्तर- हंता गोयमा ! चलमाणे चलिए, जाव निज्जरिज्जमाणे निजिणे ।
अर्थ- हे भगवन् ! जो चल रहा है, क्या वह ' चलित ' कहा जा सकता है ? जो उदीर्यमारण है वह उदीर्ण कहा जा सकता है ? जो वेद्यमान (अनुभव किया जा रहा) है वह वेदित (अनुभूत) कहा जा सकता है ? जो प्रहीयमाण ( छोड़ा जाता हुआ) है वह प्रहीण (छोड़ा हुआ) कहा जा सकता है। विद्यमान ?