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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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बाहल्य (मोटाई)- रत्नप्रभा का बाहल्य अर्थात् मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है । शर्कराप्रभाका एक लाख वत्तीस हजार, वालुकाप्रभा में एक लाख अट्ठाईस हजार, पङ्कप्रभा में एक लाख बीस हजार, धूमप्रभा में एक लाख अठारह हजार, तमःप्रभा में एक लाख सोलह हजार,तमस्तमःप्रभा में एक लाख आठ हजार।
काण्ड- भूमि के विशेष भाग को काण्ड कहते हैं । रत्नप्रभा के तीन काण्ड हैं। खर अर्थात् कठिन । पङ्कबहुल, जिस में कीचड़ ज्यादह है । अब्बहुल जिस में पानी ज्यादह है। खरकाण्ड के सोलह विभाग हैं । (१) रत्नकाण्ड, (२) वज्रकाण्ड, (३) वैडूर्य काण्ड, (४) लोहित काण्ड, (५) मसारगल्ल काण्ड, (६) हंसगर्भ काण्ड.(७) पुलक काण्ड. (E) सौगन्धिक काण्ड. (8) ज्योतीरस काण्ड, (१०) अञ्चनकाण्ड.(११) अञ्जन पुलक काण्ड, (१२) रजत काण्ड, (१३) जातरूप काण्ड, (१४) अंक काण्ड, (१५) स्फटिक काण्ड और (१६) रिछात्न काण्ड ।
जिस काण्ड में जिस वस्त की प्रधानना है उसी नाम से काण्ड का भी वही नाम है। प्रत्येक काण्ड की मोटाई एक हजार योजन है । पडूबहुल और अबहुल काण्ड एक ही प्रकार के
हैं। शर्करापमा आदि पृथ्वियाँ भी एक ही प्रकार की हैं। ' प्रतर अथवा प्रस्तट- नरक के एक एक परदे के बाद जो स्थान होता है उसी तरह के स्थानों को प्रतर कहते हैं। रत्नप्रभा से लेकर छठी तमःप्रभा तक प्रत्येक पृथ्वो में दो तरह के नरकावास हैं। आवलिकाप्रविष्ट और प्रकीर्णक । जो नरकावास चारों दिशाओं में पंक्तिरूप से अवस्थित हैं वे प्रावलिकामविष्ट कहे जाते हैं । इधर उधर बिखरे हुए प्रकीर्णक कहे जाते हैं। रत्नप्रभा में तेरह प्रतर हैं।
पहिले प्रतर के चारों तरफ प्रत्येक दिशा में उनचास नरकावास