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विधा
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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हैं। प्रत्येक विदिशा में अड़तालीस । बीच में सीमन्तक नाम का नरकेन्द्रक है। सब मिलाकर पहिले प्रतर में तीन सौ नवासी
आवलिकापविष्ट नरकावास हैं । दूसरे प्रतर की प्रत्येक दिशा में अड़तालीस तथा विदिशा में सैंतालीस नरकावास हैं अर्थात् पहिले प्रतर से आठ कम हैं। इसी तरह सभी प्रतरों में दिशाओं
और विदिशाओं में एक एक प्रतर कम होने से पूर्व से आठ आठ कम हो जाते हैं। कुल मिलाकर तेरह प्रतरों में चार हज़ार चार सौ तेतीस नरकावास आवलिकामविष्ट हैं। बाकी उनतीस लाख पचानवे हजार पांच सौ सड़सठ प्रकीर्णक हैं । कुल मिलाकर पहिली नारकी में तीस लाख नरकावास हैं।
शर्कराप्रभा में ११ प्रतर हैं। इसी तरह नीचे के नरकों में भी दो दो कम समझ लेना चाहिए । दूसरी नरक के पहिले प्रतर में प्रत्येक दिशा में ३६ श्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं
और प्रत्येक विदिशा में पैंतीस । बीच में एक नरकेन्द्रक है । सब मिलाकर दो सौपचासी नरकावास हुए। दिशा और विदिशाओं में एक एक की कमी के कारण बाकी दस प्रतरों में क्रम से आठ
आठ घटते जाते हैं। सभी प्रतरों में कुल मिलाकर दो हजार छः सौ पचानवे प्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। बाकी चौबीस लाख सत्तानवे हजार तीन सौ पांच प्रकीर्णक हैं। दोनों को मिलाने से दूसरी नरक में पच्चीस लाख नरकावास होते हैं। ____ वालुकाप्रभा में नौ प्रतर हैं । पहिले प्रतर की प्रत्येक दिशा में पच्चीस और विदिशा में चौबीस आवलिकापविष्ट नरकावास हैं। बीच में एक नरकेन्द्रक है। कुल मिलाकर एक सौ सत्तानवे नरकावास होते हैं। बाकी आठ प्रतरों में क्रम से आठ आठ कम होते जाते हैं । सभी प्रतरों में कुल मिलाकर एक हजार चार सौ पचासी नरकावास हैं। बाकी चौदह लाख,