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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३२५ (७) काल- जो उन्हें कड़ाहे वगैरह में पकाते हैं और काले रंग के होते हैं, वे काल कहलाते हैं। (८) महाकाल- जो चिकने मांस के टुकड़े टुकड़े करते हैं, उन्हें खिलाते हैं और बहुत काले होते हैं वे महाकाल कहलाते हैं। (8) असिपत्र- जो वैक्रिय शक्ति द्वारा असि अर्थात् खड्ग के आकार वाले पत्तों से युक्त वन की विक्रिया करके उसमें बैठे हुए नारकी जीवों के ऊपर तलवार सरीखे पत्ते गिराकर तिल सरीखे छोटे छोटे टुकड़े कर डालते हैं वे असिपत्र कहलाते हैं। (१०) धनु- जो धनुष के द्वारा अर्धचन्द्रादि बाणों को छोड़ कर नारकी जीवों के कान आदि काट डालते हैं वे धनुः कहलाते हैं। (११) कुम्भ- भगवती सूत्र में महाकाल के बाद असि दिया गया है। उसके बाद असिपत्र और उसके बाद कुम्भ दिया गया है। जो तलवार से उन जीवों को काटते हैं, वे असि कहलाते हैं और जो कुम्भियों में उन्हें पकाते हैं वे कुम्भ कहलाते हैं। (१२ ) वालुक- जो वैक्रिय के द्वारा बनाई हुई कदम्ब पुष्प के आकार वाली अथवा वज्र के आकार वाली बालू रेत में चनों की तरह नारकी जीवों को भूनते हैं वे वालुक कहलाते हैं। (१३) वैतरणी- जो असुर गरम मांस, रुधिर, राध, ताम्बा, सीसा, आदि गरम पदार्थों से उबलबी हुई नदी में नारकी जीवों को फेंक कर उन्हें तैरने के लिए कहते हैं वे वैतरणी कहलाते हैं। (१४) वरस्वर-- जो वज कण्टकों से व्याप्त शाल्मली वृक्ष पर नारकों को चढ़ाकर कटोर स्वर करते हुए अथवा करुण रुदन करते हुए नारकी जीवों को खींचते हैं। (१५) महापोष- जो डर से भागते हुए नारकी जीवों को पशुओं की तरह बाड़े में चन्द कर देते हैं तथा जोर से चिल्लाने हुए उन्हें वहीं रोक रखते हैं वे माघोष कहलाते हैं।