________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
कर उस पर सुखासन से बैठ जाय । बाई नासिका से धीरे धोरे साँस अन्दर खींचे और दाहिनी नासिका से बिना रोके धीरे धीरे छोड़े । कुछ दिनों तक प्रतिदिन दो तीन बार यही अभ्यास करना चाहिए।प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल प्राणायाम के लिए अच्छे माने गए हैं। कम से कम एक हफ्ते तक वायु रोकने का प्रयत्न न करे । इस तरह धीरे धीरे वायु खींचने और छोड़ने का समासाबँध जायगा। उससे चित्त की प्रसन्नता बढ़ेगी और ऐसा मालूम पड़ेगा मानो श्वासोच्छ्वास वश में हो रहा है। इस क्रिया का जब खूब अभ्यास हो जाय और चित्त प्रसन्नता का अनुभव करने लगे तो कुभ्भक का भी अभ्यास करना चाहिए।
सीधा बैठ कर वायु को एक बार शरीर से बाहर निकाल दे। फिर अंगूठे से दाहिनी नासिका को दबा कर बाई नासिका द्वारा धीरे धीरे सांसअन्दर खींचे। इस क्रिया को चार सेकण्ड से शुरू करे । फिर दोनों नासिकाएं बन्द करके १६ सेकण्ड तक सांस रोके अर्थात् कुम्भक करे। बाद में ८ सेकण्ड में धीरे धीरे दाहिनी नासिका से छोड़े। बाई नासिका को छगुनी और अनामिका अङ्गुली से दबा लेवे। फिर दाहिनी नाक से सांस खींचे और बिना रोके ही बाई नाक से बाहर निकाल दे ।१६ सेकण्ड तक सांस को बाहर निकाली हुई अवस्था में रखे। इसके बाद धीरे धीरे बाई नाक से अन्दर खींचे। प्रत्येक बार सांस लेने में चार, रोकने में १६ और बाहर निकालने में ८ सेकण्ड लगने चाहिएं। इस क्रिया का अभ्यास हो जाने के बाद धीरे धीरे सभी के टाइम को बढ़ावे। लेने में पांच, रोकने में बीस और छोड़ने में दस सेकण्ड करदे । इसी अनुपात से टाइम बढ़ाते हुए पूरी क्रिया में पांच मिनट तक पहुंच जाने पर बहुत फायदा प्रत्यक्ष दिखाई