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श्रीसेठिया जैन ग्रन्थमाला
इस से भुजाओं और छाती में बल आता है। (५) सीधा खड़ा होकर हाथों को सामने फैलादे, फिर सांस भर कर हाथों पर जोर डालता हुआ उन्हें मोड़े। इस प्रकार एक सांस में तीन चार बार करे। यह कसरत प्रत्येक हाथ से क्रमशः करनी चाहिये । इस से भी भुजाओं में बल आता है। (६) सिर के नीचे तकिया वगैरह रख कर धीरे धीरे सारे शरीर को ऊपर उठावे । इस आसन को शीर्षासन या विपरीतकरणी भी कहते हैं । इस से बहुत लाभ होते हैं, किन्तु अविधि से करने पर नुक्सान होने का भी डर रहता है। इसलिए यह आसन शुरू करने से पहिले किसी योग्य गुरु या पुस्तक से उसकी विधि जान लेनी चाहिए । जिन की आंखे कमजोर हों उन के लिए यह आसन हानिप्रद है। - शरीर को स्वस्थ और प्राणायाम के योग्य बनाने के लिए
और भी बहुत तरह के आसन या विधियाँ बताई गई हैं। अपने लिए योग्य विधि छाँटकर लगातार अभ्यास करना चाहिए। सूर्य नमस्कार भी इसके लिए बहुत लाभदायक है। __ आसनों द्वारा शरीर स्वस्थ हो जाने के बाद सुखासन से बैठ कर प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए । जो व्यक्ति जिस आसन से अधिक देर तक बिना किसी अङ्ग को पीड़ा पहुँचाये बैठ सके उसे सुखासन कहते हैं। इस में रीढ़ की 'हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। दृष्टि नाक के अग्रभाग पर जमी हो । छाती और मस्तक एक ही रेखा में हों । अगर निम्न लिखित आसन से बैठा जाय तो सिद्धि बहुत शीघ्र होती है । बाएं पैर की एड़ी गुह्य स्थान से लगी हुई हो और दाहिने पैर की नाभि के कुछ नीचे के भाग को छूती हो । पद्मासन से बैठना भी लाभदायक है। कम्बल, चटाई या ऊर्णासन बिछा