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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
है और बाहर निकलती हुई अशुभ । प्रवेश के सपय वायु जीव: (पाण) बन जाती है और वही निकलते हुए मृत्यु बन जाती है।
इन्दुमार्ग अर्थात् बाई नासिका से प्रवेश करते हुए इन्द्र और वरुण नामक वायु सभी सिद्धियों को देने वालो होती हैं। रविमार्ग अर्थात् दाहिनी नाक से निकलती और प्रवेश करती हुई मध्यम हैं । पवन और दहन नामक वायु दाहिनी नाक से निकलती हुई विनाश के लिए होती हैं । दूसरी अर्थात् बाई नासिका से निकलती हुई मध्यम हैं । इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाम की तीन नाड़ियाँ हैं। ये तीनों क्रम से चन्द्र, सूर्य और शिव का स्थान हैं तथा शरीर के बाएं, दाएं और बीच के भाग में रहती हैं। बाई नाड़ी अर्थात् इडा सभी अंगों में हमेशा अमृत वरसाती रहती है । यह अमृतमय नाड़ी अभीष्ट की सूचना देने वाली है । दक्षिण अर्थात् पिंगला नाड़ी अनिष्ट की सूचना देती है। सुषुम्ना अणिमा लघिमा आदि सिद्धियों और मुक्ति की ओर ले जाती है। अभ्युदय वगैरह शुभ कार्यों में बाई नाड़ी ही अच्छी मानी गई है। रत अर्थात् मैथुन, भोजन और युद्ध वगैरह तेज कार्यों के लिए दक्षिणा अच्छी मानी जाती है शुक्ल पक्ष के उदय में वाम (बाई) अच्छी मानी गई है ।और कृष्ण पक्ष के उदय में दक्षिणा । तीन तीन दिन के बाद इन्दु और सूर्य अर्थात् बाई और दाहिनी नाड़ी का उदय शुभ माना गया है। अगर वायु का उदय चन्द्र से हो तो अस्त सूर्य से तथा सूर्य से उदय होने पर अस्त चन्द्र से शुभ माना गया है।
शुक्लपक्ष के आरम्भ अर्थात् प्रतिपदा के दिन वायु का शुभाशुभ संचार देखना चाहिए । पहिले तीन दिन तक पवन शशि अर्थात् वामनासिका में उदित होता है। फिर तीन दिन