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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
अभ्यास के द्वारा इन मण्डलों का अपने आप ज्ञान हो जाता है। इन चार मण्डलों में क्रम से चार तरह की वायु है। ___ नाक के छेद को पूरा भरकर धीरे धीरे चलने वाली, पीले
रंग की थोड़ी सी गरम आठ अङ्गुल तक फैलने वाली और . स्वच्छ पुरन्दर नाम की वायु पार्थिव मण्डल में रहती है।
सफेद, ठण्डी, नीचे के भाग में जल्दी जल्दी चलने वाली बारह अङ्गुल परिमाण की वायु वारुणमण्डल में रहती है। __कभी ठण्डी, कभी गरम, काले रंगवाली, हमेशा तिरछी चलती हुई छः अङ्गल परिमाण वाली पवन नामक वायु पवनमण्डल में रहती है । बालरवि के समान प्रभावाली, बहुत गरम, चार अङ्गल परिमाण, आवर्त से युक्त ऊपर बहने वाली वायु दहन कहलाती है। स्तम्भ आदि कार्यों में इन्द्र, प्रशस्त कार्यों में वरुण मलिन और चंचल कार्यों में वायु और वशीकरण वगैरह में वह्नि (अग्नि) का प्रयोग किया जाता है।
किसी कार्य के प्रारम्भ करते समय या कार्य के लिए प्रश्न पूछने पर किस समय किस वायु का क्या फल होता है ? यह बताया जाता है । पुरन्दर वायु छत्र, चामर, हाथी, घोड़े, स्त्री, राज्य, धन, सम्पत्ति वगैरह मन में अभिलषित फल की प्राप्ति को बताती है । वरुणवायु स्त्री, राज्य, पुत्र, स्वजन बन्धु और श्रेष्ठ वस्तु की शीघ्र प्राप्ति कराती है । पवन नामक वाय खेती नौकरी वगैरह बनी बनाई वस्तु को बिगाड़ देती है । मृत्यु का • डर, कलह, वैर, भय और दुःख पैदा करती है । दहननामक वायु भय, शोक, रोग, दुःख, विघ्नों की परम्परा और नाश की सूचना देती है।
सभी तरह की वायु चन्द्रमार्ग अर्थात् बाई नासिका से और रविमार्ग अर्थात् दाहिनी नासिका से अन्दर आती हुई शुभ