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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
तक सूर्य में संक्रमण करता है। दुबारा फिर शशि में रहता है। इसी प्रकार तीन तीन दिन का क्रम पूर्णिमा तक रखना चाहिए । कृष्ण पक्ष में यह क्रम सूर्योदय अर्थात् दाहिनी नासिका से शुरू होता है ।
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हेमचन्द्राचार्यकृत योगशास्त्र में इस सम्बन्ध की और भी बहुत सी बातें दी हैं। विस्तार से जानने के लिए उस का पाँचवां प्रकाश देखना चाहिये ।
जिस व्यक्ति को योगाभ्यास या प्राणायाम सीखना हो, उसे किसी योग्य और अनुभवी गुरु की शरण लेनी चाहिये । गुरु के बिना अभ्यास करने से व्याधि वगैरह का डर रहता है । फिर भी प्रारम्भिक अवस्था में प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए जानकारों ने जो उपाय बताए हैं, उन्हें यहां संक्षेप से लिखा जाता है ।
प्राणायाम योग का चौथा अङ्ग है। इसे प्रारम्भ करने से पहिले तीन अङ्ग का उचित अभ्यास कर लेना आवश्यक है । इस के बिना प्राणायाम में जल्दी सिद्धि प्राप्त नहीं होती ।
तीन अङ्ग हैं, यम नियम और आसन । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह पाँच यम हैं। शौच (आभ्यन्तर और बाह्य); सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान ये पाँच नियम हैं । यम और नियम अच्छी तरह सिद्ध होजाने के बाद आसनों का अभ्यास करना चाहिये । आसनों के अभ्यास से शरीर शुद्ध हो जाता है। आलस्य दूर होता है तथा मनुष्य प्राणायाम के योग्य बन जाता है । आसनों का अभ्यास भी गुरु के समक्ष किया जाय तो अच्छा है।
प्रो० जगदीश मित्र लिखित Peace and Personality नामक पुस्तक में प्राणायाम प्रारम्भ करने से पहिले कुछ