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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
रेचक तथा पूरक करने से इस पर विजय प्राप्त होती है।
उदानवायु का रंग लाल है। हृदय, कण्ठ, तालु, भौहों का मध्यभाग और मस्तक इसके स्थान हैं। गत्यागतिपयोग से यह वश में हो जाती है। नाक के द्वारा खींचकर उसे नीचे ले जाना तथा बलपूर्वक उसके उठने पर बार बार रोककर वश में लाना गत्यागतिप्रयोग है। ____ व्यानवायु सारे शरीर में रही हुई है। इस का रंग इन्द्रधनुष सरीखा है । कुम्भक द्वारा संकोच और विस्तार करते हुए इसे जीतना चाहिए। ___यह प्राणायाम सबीज और निर्बीज दो प्रकार से होता है । निर्बीज प्राणायाम में किसी मन्त्र वगैरह का ध्यान नहीं किया जाता । उस में समय का ध्यान मात्राओं से रकवा जाता है। सबीज प्राणायाम मन्त्र जपते हुए किया जाता है । इसी मन्त्र को बीज कहते हैं । प्राणवायु का बीज है 'मैं'। अपान का 'पैं'।समान का 'बैं'। उदान का 'रौं' और व्यान का 'लौं'। सभी प्राणायामों में 'ॐ' का जाप भी किया जाता है।
प्राणवायु को जीतने पर जठराग्नि तेज हो जाती है । श्वासोच्छ्वास दीर्घ और गम्भीर हो जाते हैं। सभी प्रकार की वायु पर विजय प्राप्त होती है। शरीर हलका मालूम पड़ता है।
समान और अपानवायु को वश में कर लेने पर घाव और फोड़े वगैरह जन्दी भर जाते हैं, हड्डी वगैरह टूट जाय तो जल्दी सन्ध जाती है । जठाराग्नि बढ़ती है। शरीर हलका रहता है। बीमारी जल्दी नष्ट हो जाती है।
उदान के वश में होने पर अर्चिरादि मार्ग से अपनी इच्छानुसार उत्क्रान्ति अर्थात् जीव का ऊर्ध्वगमन होता है । कीचड़, पानी, कांटे वगैरह किसी वस्तु से नुक्सान नहीं पहुँचता।