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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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___ भी एक सरीखी होती है। एक के चंचल होने से दूसरा चंचल
हो जाता है । मन वश में होने से इन्द्रियों का दमन होता है। इन्द्रिय दमन से कर्मों की निर्जरा होती है। इस प्रकार प्राणायाम मोक्ष के प्रति भी कारण है। पतञ्जलिकृत योगदर्शन में बताया गया है कि प्राणायाम से मनुष्य को तरह तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । पाश्चात्य देशों में प्रचलित, मेस्मेरिज्म, हिमाटिज्म, क्लेयरवोयेन्स आदि सभी आध्यात्मिक सिद्धियाँ इसी पर निर्भर हैं । हेमचन्द्राचार्यकृत योगदर्शन में इस का स्वरूप नीचे लिखे अनुसार बताया गया है। ___प्राण अर्थात् मुँह और नाक में चलने वाली वायु की गति को पूर्ण रूप से वश में कर लेना प्राणायाम है। योग के तीसरे अंग आसनों पर विजय प्राप्त करने के बाद प्राणायाम का अभ्यास पतञ्जलि वगैरह ऋषियों ने योगसिद्धि के लिए बताया है। प्राणायाम के बिना वायु और मन पर विजय नहीं हो सकती। प्राणायाम के सात भेद हैं(१) रेचक- प्रयत्न पूर्वक पेट की हवा को नासिका द्वारा बाहर निकालने का नाम रेचक है । (२) पूरक- बाहर से वायु खींचकर पेट को भरना पूरक है। (३) कुम्भक- नाभि कमल में कुंभ की तरह वायु को स्थिर रखना कुम्भक है। (४) प्रत्याहार-वायु को नाभि वगैरह स्थानों से हृदय वगैरह में खींचकर लेजाना प्रत्याहार है। (५)शान्त- तालु, नाक और मुख में वायु को रोकना शान्त है। (६) उत्तर- बाहर से वायु को खींचकर उसे ऊपर ही हृदय वगैरह स्थानों में रोकना उत्तर है। (७) अधर- ऊपर से नीचे लाना अधर है ।