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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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अरिहन्त भगवान् के बताये हुए आश्रवनिरोध या कर्मक्षय आदि प्रयोजनों के सिवाय और किसी प्रयोजन से आचार का सेवन न करना । गाथा का अभिप्राय नीचे लिखे अनुसार है। ___ "जिनवचन अर्थात् आगमों में भक्तिवाला, अतिन्तिन अर्थात् बार बार पूछने पर भी बिना चिढ़े शान्तिपूर्वक उत्तर देने वाला, मोक्ष का अभिलापी, इन्द्रिय और मन का दमन करने वाला तथा आत्मा को मोक्ष के समीप ले जाने वाला आचारसमाधिसम्पन्न व्यक्ति आस्रव के द्वारों को रोक देता है।" (६) छठी गाथा में सभी समाधियों का फल कहा है___ मन, वचन और काया से शुद्ध व्यक्ति सतरह प्रकार के संयम में आत्मा को स्थिर करता हुआ चारों समाधियों को प्राप्त कर अपना विपुल हित करता है तथा अनन्त सुख देने वाले कल्याण रूप परम पद को प्राप्त कर लेता हैं। (७) सातवीं गाथा में भी समाधियों का फल बताया है
ऐसा व्यक्ति जन्म और मृत्यु से छूट जाता है, नरक आदि अशुभ गतियों को हमेशा के लिये छोड़ देता है। या तो वह शाश्वत सिद्ध हो जाता है या अल्परति तथा महाऋद्धि वाला अनुत्तर वैमानिक आदि देव होता है ।
(दशवकालिक सूत्र अध्ययन ६ उद्देशा ४) ५५४- वचन विकल्प सात
वचन अर्थात् भाषण सात तरह का होता है(१) आलाप-- थोड़ा अर्थात् परिमित बोलना । (२) अनालाप- दुष्ट भाषण करना। (३) उल्लाप-- किसी बात का व्यङ्गयरूप से वर्णन करना। (४) अनुल्लाप-- व्यङ्गयरूप से दुष्ट वर्णन करना । इस स्थान पर कहीं कहीं अनुलाप पाठ है, उसका अर्थ है बार २ बोलना।