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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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(५) स्तोक- सात प्राणों का एक स्तोक होता है। (६) लव- सात स्तोकों का एक लव होता है । (७) मुहूर्त- ७७ लव अर्थात् ३७७३ श्वासोच्छ्वास का एक मुहूर्त होता है। एक मुहूर्त में दो घड़ी होती हैं । एक घड़ी चौवीस मिनट की होती है।
(जम्बूद्वीप परणत्ति, २ कालाधिकार ) ५५२- संस्थान सोत
आकार विशेष को संस्थान कहते हैं । इस के सात भेद हैं(१) दीर्घ, (२) हस्व, (३) वृत्त, (४) व्यस्र, (५) चतुरस्र, (६) पृथुल, (७) परिमंडल । (१) दीर्घ-- बहुत लम्बे संस्थान को दीर्घ संस्थान कहते हैं। (२) ह्रस्व-दीर्घ संस्थान से विपरीत अर्थात् छोटे संस्थान को ह्रस्व संस्थान कहते हैं। (६) पृथुल- फैले हुए संस्थान को पृथुल संस्थान कहते हैं। शेष चार की व्याख्या छठे बोल संग्रह नं० ४६६ दी जा चुकी है।
(ठाणांग ७ वा मुत्र ५४८ और ठाणांग १ सूत्र ४१ ) ५५३-विनयसमाधि अध्ययन की सातगाथाएं
दशवैकालिक सूत्र के नवें अध्ययन का नाम विनयसमाधि है। उसके चतुर्थ उद्देश में सात गाथाएं हैं, जिन में विनयसमाधि के चार स्थानों का वर्णन है । चार स्थानों के नाम हैं- (१) विनयसमाधि, (२) श्रुतसमाधि, (३) तपसमाधि (४) आचारसमाधि । इन में से फिर प्रत्येक के चार चार भेद हैं । सातों गाथाओं का सारांश नीचे लिखे अनुसार है-- (१) पहिली गाथा में विनयसमाधि के चार भेद किये गए हैं।
“विनय, श्रुत, तप और आचार के रहस्य को अच्छी तरह जानने वाले जितेन्द्रिय लोग आत्मा को विनय आदि में लगाते