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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
प्रमाण से प्रमेय का ज्ञान न हो तो उपरोक्त बात कही ही नहीं जा सकती, इसलिये यह स्ववचनबाधित है । (७) अनभीप्सित साध्यधर्मविशेषण - जहाँ साध्य अनुमान का प्रयोग करने वाले के सिद्धान्त से प्रतिकूल हो । जैसे- स्याद्वाद को मानने वाला वस्तु को एकान्त नित्य या एकान्त नित्य सिद्ध करने लग जाय ।
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(प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार परिच्छेद ६ सूत्र ३८-४६)
५५० - सात प्रकार के सब जीव
(१) पृथ्वीकायिक, (२) अपकायिक, (३) तेङकायिक, (४) वायुकायिक, (५) वनस्पतिकायिक, (६) सकायिक और (७) अकायिक अर्थात् सिद्ध। दूसरे प्रकार से भी जीव के सात भेद हैं- कृष्ण लेश्या से लेकर शुक्ल लेश्या तक ६ भेद और सातवें अलेश्या - लेश्यारहित अर्थात् सिद्ध अथवा अयोगी । सिद्ध और चौदहवें गुणस्थान वाले जीव लेश्यारहित होते हैं। इनकी व्याख्या दूसरे बोल संग्रह नं० ७ में आ चुकी है। (ठाणांग सूत्र ५६० )
५५१ - काल के भेद सात ( मुहूर्त तक ) समय से लेकर मुहूर्त तक काल के सात भेद हैं( १ ) समय काल के सब से छोटे भाग को, जिस का दूसरा भाग न हो सके, समय कहते हैं ।
(२) आवलिका - असंख्यात समय की एक आवलिका होती है। ( ३ ) श्वास तथा उच्छास - ३७७३ आवलिकाओं का एक श्वास होता है । इतनी ही आवलिकाओं का एक निःश्वास अथवा उच्छ्वास होता है।
( ४ ) प्राण- एक श्वास तथा निःश्वास मिलकर अर्थात् ७५४६ आवलिकाओं का एक प्रारण होता है ।