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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
५४६ - पक्षाभास के सात भेद
जहां साध्य को सिद्ध किया जाय उसे पक्ष कहते हैं । जैसे पर्वत अग्निबाला है, क्योंकि धुएँ वाला है । यहाँ अग्नि साध्य है और वह पर्वत में सिद्ध की जाती है, इसलिए पर्वत पक्ष है । दोष वाले पक्ष को पक्षाभास कहते हैं। इसके सात भेद हैं( १ ) प्रतीतसाध्यधर्मविशेषण- जिस पक्ष का साध्य पहिले से सिद्ध हो । जैसे- जैनमतावलम्बी के प्रति कहना 'जीव है' । जैन सिद्धान्त में जीव की सत्ता पहिले से सिद्ध है । उसे फिर सिद्ध करना अनावश्यक है, इसीलिये यह दोष है । (२) प्रत्यक्ष निराकृतसाध्यधर्मविशेषण- जिस पक्ष का साध्य प्रत्यक्ष से बाधित हो । जैसे यह कहना कि 'पृथ्वी आदि भूतों से विलक्षण आत्मा नहीं है।' चेतन रूप आत्मा का जड़भूतों से विलक्षण न होना प्रत्यक्षबाधित है ।
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( ३ ) अनुमाननिराकृतसाध्यधर्मविशेषण - जहां साध्य अनुमान से बाधित हो । जैसे सर्वज्ञ या वीतराग नहीं है । यह पक्ष सर्वज्ञ को सिद्ध करने वाले अनुमान से बाधित है । ( ४ ) आगमनिराकृतसाध्यधर्मविशेषण - जहाँ आगम से बाधा पड़ती हो । जैसे- 'जैनों को रात्रिभोजन करना चाहिए ।' जैनशास्त्रों में रात्रिभोजन निषिद्ध है, इसलिये यह आगम से बाधित है। ( ५ ) लोकनिराकृतसाध्यधर्मविशेषण - जहाँ लोक अर्थात् साधारण लोगों के ज्ञान से बाधा आती हो। जैसे- प्रमाण और प्रमेय का व्यवहार वास्तविक नहीं है । यह बात सभी को मालूम पड़ने वाले घट पट आदि पदार्थों की वास्तविकता से बाधित हो जाती है ।
( ६ ) स्ववचननिराकृतसाध्यधर्मविशेषण - जहाँ अपनी ही बात सेवाधा पड़ती हो । जैसे- 'प्रमाण से प्रमेय का ज्ञान नहीं होता'