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भी सेठिया जैन प्रन्थमाला
प्रदेशों के दण्ड को शरीर से बाहर निकाल कर यथास्थूल पूर्वबद्ध आहारक कर्म के प्रभूत पुद्गलों की निर्जरा करता है। (७) केवलिसमुद्घात- अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने वाले केवली के समुद्घात को केवलिसमुद्घात कहते हैं । वह वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म को विषय करता है। __ अन्तर्मुहर्च में मोक्ष प्राप्त करने वाला कोई केवली (केवलज्ञानी) कर्मों को सम करने के लिए अर्थात् वेदनीय आदि कर्मों की स्थिति को आयु कर्म की स्थिति के बराबर करने के लिए समुद्घात करता है। केवलिसमुद्घात में आठ समय लगते हैं। प्रथम समय में केवली आत्मप्रदेशों के दण्ड की रचना करता है। वह मोटाई में स्वशरीर परिमाण और लम्बाई में ऊपर और नीचे से लोकान्त पर्यन्त विस्तृत होता है। दूसरे समय में केवली उसी दण्ड को पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में फैलाता है । फिर उस दण्ड का लोक पर्यन्त फैला हुआ कपाट बनता है। तीसरे समय में दक्षिण और उत्तर अथवा पूर्व और पश्चिम दिशा में लोकान्त पर्यन्त आत्मप्रदेशों को फैलाकर उसी कपाट को मथानी रूप बना देता है। ऐसा करने से लोक का अधिकांश भाग आत्मप्रदेशों से व्याप्त हो जाता है, किन्तु मथानी की तरह अन्तराल प्रदेश खाली रहते हैं। चौथे समय में मथानी के अन्तरालों को पूर्ण करता हुआ समस्त लोकाकाश को आत्मप्रदेशों से व्याप्त कर देता है, क्योंकि लोकाकाश और जीव के प्रदेश बराबर हैं। पाँचवें, छठे, सातवें और आठवें समय में विपरीत क्रम से आत्मप्रदेशों का संकोच करता है। इस प्रकार आठवें समय में सब आत्मप्रदेश पुनः शरीरस्थ हो जाते हैं।
(पन्नवणा पद :६ ) (टाणांग सुत्र ५०६) (द्रव्यलोकप्रकाश पृष्ठ १२१)(प्रवचनसारोद्धार गाथा १३१२.-१३४१