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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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इन सातों स्वरों के तीन ग्राम हैं । षड्जग्राम, मध्यग्राम, और गान्धारग्राम । षड़जग्राम की सात मूछनाएं हैं- (१) ललिता, (२) मध्यमा, (३) चित्रा, (४) रोहिणो, (५) मतंगजा, (६) सौवीरी, (७) परमध्या । मध्यग्राम की भी सात मूर्छनाएं हैं(१)पंचमा, (२) मत्सरी, (३) मृदुमध्यमा, (४) शुद्धा, (५) अत्रा, (६) कलावती और (७) तीव्रा । गान्धारग्राम की भी सात मूर्छनाएं हैं- (१) रौद्री, (२)ब्राह्मी, (३) वैष्णवी, (४) खेदरी, (५) सुरा, (६) नादावती, और (७) विशाला ।
गीत की उत्पत्ति, उसका सजातीय समय और आकारसातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं । रुदन इनका सजातीय है। किसी कविता की एक कड़ी उसका सांस है। प्रारम्भ में मृदु, मध्य में तीव्र और अन्त में मन्द यही गीत के तीन प्रकार हैं।
संगीत के छः दोष हैं- (१) भीत- डरते हुए गाना । (२) द्रुत-- जल्दी जल्दी गाना । (३) उप्पिच्छ-सांस ले लेकर जल्दी जल्दीगाना अथवा शब्दों को छोटे बनाकर गाना। (४) उत्तालताल से आगे बढ़कर या आगे पीछे ताल देकर गाना। (५) काकस्वर-कौए की तरह कर्णकटु और अस्पष्ट स्वर से गाना। (६) अनुनास-नाक से गाना।
संगीत के आठ गुण हैं(१) पूर्ण- स्वर, आरोह अवरोह आदि से पूर्ण गाना । (२) रक्त- गाई जाने वाली राग से अच्छी तरह परिष्कृत।(३) अलंकृत- दूसरे दूसरे स्पष्ट और शुभ स्वरों से मएडित। (४) व्यक्तअक्षर और स्वरों की स्पष्टता के कारण स्फुट । (५) अविघुष्टरोने की तरह जहां स्वर बिगडने न पावे उसे अविघुष्ट कहते हैं। (६) मधुर-बसन्त ऋतु में मतवाली कोयल के शब्द की तरह मधुर। (७) सम-ताल, वंश और स्वर वगैरह से ठीक नपा हुआ।