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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
के संयोग से । (७) निषाद भौहें चढाकर तेजी से बोला जाता है। ये सातों स्वर अलग अलग प्राणी से पैदा होते हैं। ___ मोर का स्वर षड्ज होता है । कुक्कुट का ऋषभ, हंस का गांधार, गाय और भेड़ों का मध्यम । बसंत ऋतु में कोयल का स्वर पंचम होता है। सारस और क्रौंच पक्षी रैवत स्वर में बोलते हैं। हाथी का स्वर निषाद होता है। __ अचेतन पदार्थों से भी ये सातों स्वर निकलते हैं।(१) ढोल से षड्ज स्वर निकलता है । (२) गोमुखी (एक तरह का बाजा) से ऋषभ स्वर निकलता है। (३) शंख से गांधार स्वर उत्पन्न होता है । (४) झल्लरी से मध्यम । (५) तबले से पंचम स्वर निकलता है । (६) नगारे से धैवत । (७) महाभेरी से निषाद । इन सातों स्वरों के सात फल हैं।
षड्ज स्वर से मनुष्य आजीविका को प्राप्त करता है । उसके किये हुए काम व्यर्थ नहीं जाते । गौएँ, पुत्र और मित्र प्राप्त होते हैं। वह पुरुष स्त्रियों का प्रिय होता है।ऋषभ स्वर से ऐश्वर्य, सेना, सन्तान, धन, वस्त्र, गंध,आभूषण, स्त्रियाँ और शयन प्राप्त होते हैं। गान्धार स्वर को गाने की कला को जानने वाले श्रेष्ठ आजीविका वाले, प्रसिद्ध कवि और दूसरी कलाओं तथा शास्त्रों के पारगामी हो जाते हैं । मध्यम स्वर से मनुष्य खाता पीता और सुखी जीवन प्राप्त करता है । पंचम स्वर वाला पुरुष पृथ्वीपति शूरवीर, संग्रह करने वाला और अनेक गुणों का नायक बनता है। रैवत स्वर वाला व्यक्ति दुखी जीवन, बुरा वेष, नीच आजीवका, नीच जाति तथा अनार्य देश को प्राप्त करता है। ऐसे नर चोर, चिड़ीमार, फाँसी डालने वाले, शूकर के शिकारी या मल्लयुद्ध करने वाले होते हैं। निषाद स्वर वाले लोग झगड़ालू, पैदल चलने वाले, पत्रवाहक, अवारा घूमने और भार ढोनेवाले होते हैं।