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श्री सेठिय, जैन ग्रन्थमाला
कहे जाते हैं। सभी पार्थिव अर्थात् पृथ्वी रूप होने से एकेन्द्रिय हैं।
(ठाणांग सूत्र ५५७) ५३०-- संहरण के अयोग्य सात
सात व्यक्तियों को कोई भी राग या द्वेष के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान नहीं लेजा सकता। (१) श्रमणी-शुद्ध ब्रह्मचर्य पालन करने वाली साध्वी। उसमें सतीत्व अथवा ब्रह्मचर्य का बल होने से कोई भी संहरण नहीं कर सकता अर्थात् जबर्दस्ती इधर उधर नहीं लेजा सकता। (२) जिसमें वेद अर्थात् किसी तरह की विषय भोग सम्बन्धी अभिलाषा न रही हो, अर्थात् शुद्ध ब्रह्मचारी को। (३) जिसने पारिहारिक तप अङ्गीकार किया हो । (४) पुलाकलब्धि वाले को । (५)अप्रमत्त अर्थात् प्रमादरहित संयम का पालन करने वाले को। (६) चौदह पूर्वधारी को। (७) आहारक शरीर वाले को। ____ इन सातों को कोई भी जबर्दस्ती इधर उधर नहीं लेजा सकता।
(प्रवचनसारोद्धार २६१ वा द्वार) ५३१-- आयुभेद सात ____वाँधी हुई आयुष्य बिना पूरी किये बीच में ही मृत्यु हो जाना
आयुभेद है। यह सोपक्रम आयुष्य वाले के ही होता है। इसके सात कारण हैं(१) अज्झवसाण- अध्यवसान अर्थात् राग, स्नेह या भय रूप प्रबल मानसिक आघात होने पर बीच में ही आयु टूट जाती है। (२) निमित्त-शस्त्र दण्ड आदि का निमित्त पाकर । (३) आहार- अधिक भोजन कर लेने पर। (४) वेदना- आँख या शूल वगैरह की असह्य वेदना होने पर।