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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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करता है उसे द्रव्य कहते हैं। (७)जिसमें भूत पर्याय की योग्यता हो उसे भी द्रव्य कहते हैं। भविष्य में राजा की पर्याय प्राप्त करने के योग्य राजकुमार को भावी राजा कहा जाता है, उसे द्रव्य राजा भी कह सकते हैं। इसी तरह पहले जिस घड़े में घी रक्खा था, अब घी निकाल लेने पर भी घी का घड़ा कहा जाता है क्योंकि उस में पूर्व पर्याय की योग्यता है। इस तरह भूत या भावी पर्याय के जो योग्य होता है उसे द्रव्य कहते हैं। पुद्गलादि अपनी प्रायः सभी पर्यायों को प्राप्त कर चुके हैं, जो बाकी हैं उन्हें भविष्य में प्राप्त कर लेंगे। इसी लिए इन्हें द्रव्य कहा जाता है। अगर भूत या भविष्य किसी एक पर्याय वाले को ही द्रव्य कहा जाय तो पुद्गलादि की गिनती द्रव्यों में न हो।
(विशेषावश्यक भाष्य गाथा २८) ५२८- चक्रवर्ती के पञ्चेन्द्रियरत्न सात
प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात पञ्चेन्द्रियरन होते हैं, अर्थात् सात पञ्चेन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो अपनी अपनी जाति में सब से श्रेष्ठ होते हैं। वे इस प्रकार हैं- (१) सेनापति, (२) गाथापति, अर्थात् सेठ या गृहपति (कोठारी), (३) वर्द्धकी अर्थात् सूत्रधार (अच्छे अच्छे नाटकों का अभिनय करने वाला) (४) पुरोहित शान्ति वगैरह कर्म कराने वाला, (५) स्त्री, (६) अश्व (७) हाथी।
(ठाणांग सूत्र ५१७) ५२९-- चक्रवती के एकेन्द्रियरत्न सात
प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात एकेन्द्रियरन होते हैं
(१) चक्ररत्न, (२) छत्ररत्न, (३) चमररन, (४) दण्डरत्न, (५) असिरत्न, (६) मणिरत्न, और (७) काकिणीरत्न ।
ये भी अपनी अपनी जाति में वीर्य से उत्कृष्ट होने से रत्न