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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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वगैरह की कल्पना कर लेना भी स्थापनानुयोग है। (३) द्रव्यानुयोग- द्रव्य का व्याख्यान, द्रव्य में द्रव्य के लिए अथवा द्रव्य द्वारा अनुकूल सम्बन्ध, द्रव्य का पयोय के साथ योग्य सम्बन्ध द्रव्यानुयोग है। अथवा जो बात बिना उपयोग के कही जाती है उसे द्रव्यानुयोग कहते हैं। इसकी व्याख्या कई प्रकार से की जा सकती है।
द्रव्य के व्याख्यान को भी द्रव्यानुयोग कहते हैं। भूमि आदि अधिकरण पर पड़े हुए द्रव्य का भूतल के साथ सम्बन्ध, कारणभूत द्रव्य के द्वारा पत्थरों में परस्पर अनुकूल सम्बन्ध, इमली वगैरह खट्टे द्रव्य के कारण वस्त्र वगैरह में लाल, पीला आदि रंग की पर्याय विशेष का सम्बन्ध, शिष्यरूप द्रव्य को बोध प्राप्त कराने के लिए तदनुरूप योग अर्थात् व्यापार, इस प्रकार अनेक तरह का द्रव्यानुयोग जानना चाहिए । द्रव्यों द्वारा द्रव्यों का, द्रव्यों के लिए, अथवा द्रव्यों का पर्याय के साथ, कारणभूत द्रव्यों द्वारा अनुरूप वस्तुओं के साथ सम्बन्ध या अनुयोग रहित अनुयोग की प्ररूपणा द्रव्यानुयोग है। (४) क्षेत्र, (५) काल, (६) वचन, और (७) भाव अनुयोग भी इसी तरह समझ लेना चाहिए ।
(विशेषावश्यकभाष्य गाथा १३८५- १३६२) ५२७-- द्रव्य के सात लक्षण (१) जो नवीन पर्याय को प्राप्त करता है और प्राचीन पर्याय को छोड़ता है उसे द्रव्य कहते हैं। जैसे मनुष्य गति से देवलोक में गया हुआ जीव मनुष्य रूप पर्याय को छोड़ता है और देवरूप पर्याय को प्राप्त करता है इसलिए जीव द्रव्य है। (२) जो पर्यायों द्वारा प्राप्त किया जाता है और छोड़ा जाता है । ऊपर वाले उदाहरण में जीवरूप द्रव्य मनुष्य पर्याय द्वारा