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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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५२६- अनुयोग के निक्षेप सात ___ व्याख्या- अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वार्तिक ये पाँच अनुयोग के पर्याय शब्द हैं । सूत्र का अर्थ के साथ सम्बन्ध जोड़ना अनुयोग है । अथवा सूत्र का अपने अभिधेय (कही जाने वाली वस्तु) के अनुकूल योग अथवा व्यापार, जैसे घट शब्द घड़े रूप पदार्थ का वाचक है, यहाँ घट शब्द का अर्थ के अनुरूप होना । अथवा सूत्र को अणु कहते हैं, क्योंकि संसार में वस्तुएं या अर्थ अनन्त हैं । उनकी अपेक्षा सूत्र अणु अर्थात् अल्प है। अथवा पहिले तीर्थकरों द्वारा 'उप्पएणेइ वा' इत्यादि त्रिपदि रूप अर्थ कहने के बाद गणधर उस पर सूत्रों की रचना करते हैं, इसलिए सूत्र पीछे बनता है । कवि भी पहिले अपने हृदय में अर्थ को जमाकर फिर काव्य की रचना करते हैं। इस प्रकार अर्थ के पीछे होने के कारण भी मूत्र अणु है । उस सूत्र का अपने अभिधेय के साथ सम्बद्ध होने काव्यापार अथवा मुत्र के साथ अभिधेयकासम्बन्ध अनुयोग है।
इस अनुयोग का सात प्रकार से निक्षेप होता है। किसी बात की व्याख्या करने के लिए उसके अलग अलग पहलुओं की सूची बनाने के क्रम को निक्षेप कहते हैं ।
अनुयोग सात प्रकार का है(१) नामानुयोग- इन्द्र आदि नामों की व्याख्या को, अथवा जिस वस्तु का नाम अनुयोग हो, या वस्तु का नाम के साथ योग अर्थात् सम्बन्ध नामानुयोग है। जैसे दीपक रूप वस्तु का दीप शब्द के साथ, सूर्य का सूर्य शब्द के साथ तथा अग्नि का अग्नि शब्द के साथ सम्बन्ध । (२) स्थापनानुयोग- इसकी व्याख्या भी नामानुयोग की तरह ही है। काठ वगैरह में किसी महापुरुष या हाथी घोड़े