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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
जिनकल्प अङ्गीकार करने वाले साधु का शारीरिक बल साधारण व्यक्तियों से अधिक होना चाहिए । तपस्या आदि के कारण शारीरिक बल के कुछ क्षीण रहने पर भी मानसिक धैर्यबल इतना होना चाहिए कि बड़े से बड़े कष्ट आने पर भी उनसे घबराकर विचलित न हो। ____ऊपर कही हुई पाँच भावनाओं से आत्मा को मजबूत बना कर गच्छ में रहते हुए भी जिनकल्प के समान आचरण रक्खे। हमेशा तीसरे पहर आहार करे । गृहस्थों द्वारा फैंक देने योग्य पासुक मक्की के दाने या मुखे चने आदि रूक्ष आहार करे । संसृष्ट, असंसृष्ट, उद्धृत, अल्पलेप, उद्गृहीत, प्रगृहीत और उज्झित धर्म इन सात एषणाओं में से पहले की दो छोड़ कर बाकी किन्हीं दो एषणाओं का प्रतिदिन अभिग्रह अङ्गीकार करे। एक के द्वारा आहार ग्रहण करे और दूसरी के द्वारा पानी । इसके सिवाय भी दूसरे सभी जिनकल्प के विधानों पर चल कर आत्मा को शक्ति सम्पन्न बनावे । इसके बाद जिनकल्प ग्रहण करने की इच्छा वाला साधु संघ को इकट्ठा करे । संघ के प्रभाव में अपने गच्छ को तो अवश्य बुलावे । तीर्थकर के पास, वे न हों तो गणधर के पास, उनके अभाव में चौदह पूर्वधारी के पास, वे भी न हों तो दस पूर्वधारी के पास और उनके भी अभाव में बड़, पीपल या अशोक वृक्ष के नीचे जाकर अपने स्थान पर बिठाए हुए आचार्य को, बाल वृद्ध सभी साधुओं को विशेष प्रकार से अपने से विरुद्ध साधु को इस प्रकार खमावे 'हे भगवन् ! अगर कभी प्रमाद के कारण मैंने आप के साथ अनुचित बर्ताव किया हो तो शुद्ध हृदय से कषाय और शल्य रहित होकर क्षमा मांगता हूँ। इसके बाद जिनकल्प लेने वाले साधु से दूसरे मुनि यथायोग्य वन्दना करते हुए खमाते हैं । इस तरह खमाने वाले को