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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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होता है। उन सब को उपयुक्त पाँच बातों से आत्मा की तुलना करनी चाहिए । कान्दर्पिकी, किल्विषिकी, आभियोगिकी, आसुरी और संमोहिनी इन पाँच भावनाओं को छोड़ दे। तुलना के लिए पाँच वातें नीचे लिखे अनुसार हैं(१) तप- सुधा (भूख) पर इस प्रकार विजय प्राप्त करे कि देवादिद्वारा दिये गये उपसर्ग के कारण अगर छः महीने तक आहार पानी न मिले तो भी दुखी (खेदित) न हो। (२) सत्त्व- सत्त्वभावना से भय पर विजय प्राप्त करे। यह भावना पाँच प्रकार की है- (१) रात को जब सब साधु सो जायँ तो अकेला उपाश्रय में काउसग्ग करे । (२) उपाश्रय के बाहर रह कर काउसग्ग करे।(३) चौक में रहकर काउसग्ग करे। (४) मूने घर में रह कर काउसग्ग करे।(५) स्मशान में रहकर काउसग्ग करे। इस प्रकार पाँच स्थानों पर काउसग्ग करके सब प्रकार के भय पर विजय प्राप्त करे । यह सत्त्व भावना है। (३) सूत्र भावना- सूत्रों को अपने नाम की तरह इस प्रकार याद करले कि उनकी आवृत्ति के अनुसार रात अथवा दिन में उच्छ्वास, प्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त वगैरह काल को ठीक ठीक जान सके , अर्थात् समय का यथावत् ज्ञान कर सके। (४) एकत्व भावना- अपने संघाड़े के साधुओं से आलाप संलाप, सूत्राथे पूछना या बताना, सुख दुःख पूछना, इत्यादि सारे पुराने सम्बन्धों को छोड़ दे। ऐसा करने से बाह्यसम्बन्ध का मूल से नाश हो जाता है। इसके बाद शरीर उपधि आदि को भी अपने से भिन्न समझे। इस तरह सभी वस्तुओं से आसक्ति या ममत्व दूर हो जाता है। (५) बल भावना-अपने बल अर्थात् शक्ति की तुलना करे । बल दो तरह का होता है- शारीरिक बल और मानसिक बल ।