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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
में चले जाने या एकलविहार करने को गणापक्रमण कहते हैं। आचार्य, उपाध्याय, स्थविर या अपने से किसी बड़े साधु की आज्ञा लेकर ही दूसरे गण में जाना कल्पता है । इस प्रकार एक गण को छोड़ कर जाने की आज्ञा मांगने के लिए तीर्थकरों ने सात कारण बताए हैं
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( १ ) 'निर्जरा के हेतु सभी धर्मों को मैं पसन्द करता हूँ। सूत्र और अर्थरूप श्रुत के नए भेद सीखना चाहता हूँ । भूले हुए को याद करना चाहता हूँ और पढ़े हुए की आवृत्ति करना चाहता हूँ तथा क्षपण, वैयावृत्य रूप चारित्र के सभी भेदों का पालन करना चाहता हूँ । उन सब की इस गरण में व्यवस्था नहीं है । इसलिए हे भगवन् ! मैं दूसरे गरण में जाना चाहता हूँ'। इस प्रकार आज्ञा मांग कर दूसरे गण में जाना पहला गणापक्रमण है । दूसरे पाठ के अनुसार 'मैं सब धर्मो को जानता हूँ' इस प्रकार घमण्ड से गण छोड़ कर चले जाना पहला गणापक्रमण है ( २ ) 'मैं श्रुत और चारित्र रूप धर्म के कुछ भेदों का पालन करना चाहता हूँ और कुछ का नहीं, जिन का पालन करना चाहता हूँ उन के लिए इस गण में व्यवस्था नहीं है । इस लिए दूसरे गण में जाना चाहता हूँ' इस कारण एक गण को छोड़ कर दूसरे में चला जाना दूसरा गणापक्रमण है । (३) 'मुझे सभी धर्मों में सन्देह है । अपना सन्देह दूर करने के लिए मैं दूसरे गण में जाना चाहता हूँ' ।
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(४) 'मुझे कुछ धर्मों में सन्देह है और कुछ में नहीं, इस लिए दूसरे गरण में जाना चाहता हूँ' ।
(५) 'मैं सब धर्मों का ज्ञान दूसरे को देना चाहता हूँ, अपने गण में कोई पात्र न होने से दूसरे गा में जाना चाहता हूँ' । (६) 'कुछ धर्मों का उपदेश देने के लिए जाना चाहता हूँ' ।