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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
वाले को दृष्टिविषभावना | सोलह सतरह और अठारह वर्ष वाले को क्रम से चारणभावना, महास्वनभावना और तेजोनिसर्ग पढ़ाना चाहिए । उन्नीस वर्ष वाले को दृष्टिवाद नाम का बारहवाँ अंग और बीस वर्ष पूर्ण हो जाने पर सभी श्रुतों को पढ़ने का वह अधिकारी हो जाता है । इन सूत्रों को पढ़ाने
लिए यह नियम नहीं है कि इतने वर्ष की दीक्षापर्याय के बाद ये सूत्र अवश्य पढ़ाये जायँ, किन्तु योग्य साधु को इतने समय के बाद ही विहित सूत्र पढ़ाना चाहिए | |
( ४ ) आचार्य तथा उपाध्याय को बीमार, तपस्वी तथा विद्याध्ययन करने वाले साधुओं की वैयावच्च का ठीक प्रबन्ध करना चाहिए | यह चौथा संग्रहस्थान है ।
(५) आचार्य तथा उपाध्याय को दूसरे साधुओं से पूछकर काम करना चाहिए, बिना पूछे नहीं । अथवा शिष्यों से दैनिककृत्य के लिए पूछते रहना चाहिए। यह पाँचवा संग्रहस्थान है । (६) आचार्य तथा उपाध्याय को प्राप्त आवश्यक उपकरणों की प्राप्ति के लिए सम्यक्प्रकार व्यवस्था करनी चाहिए । अर्थात् जो वस्तुएं आवश्यक हैं और साधुओं के पास नहीं हैं उनकी निर्दोष प्राप्ति के लिए यत्न करना चाहिए। यह छठा संग्रहस्थान है। (७) आचार्य तथा उपाध्याय को पूर्वप्राप्त उपकरणों की रक्षा का ध्यान रखना चाहिए । उन्हें ऐसे स्थान में न रखने देना चाहिए जिस से वे खराब हो जायँ या चोर वगैरह ले जायँ । यह सातवाँ संग्रहस्थान है ।
(ठाणांग सूत्र ३६६ तथा ५४४ ) ( व्यवहार सूत्र उद्देशा १० गाथा १ - ३५) ५१५-- गणापक्रमण सात
कारण विशेष से एक गण या संघ को छोड़ कर दूसरे गण
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आचार्य या उपाध्याय किसी साधु को विशेष बुद्धिमान् और योग्य समझ कर यथावसर कर सकत हैं।