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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(७) 'गण से बाहर निकल कर जिनकल्प आदि रूप एकल विहार प्रतिमा अङ्गीकार करना चाहता हूँ' । अथवा (१) 'मैं सवधर्मों पर श्रद्धा करता हूँ इसलिए उन्हें स्थिर करने के लिए गणापक्रमण करना चाहता हूँ। (२) 'मैं कुछ पर श्रद्धा करता हूँ और कुछ पर नहीं। जिन पर श्रद्धा नहीं करता उन पर विश्वास जमाने के लिए गणापक्रमण करता हूँ'। इन दोनों में सर्वविषयक और देशविषयक दर्शन अर्थात् दृढ श्रद्धान के लिए गणापक्रमण बताया गया है। (३-४) इसी प्रकार सर्वविषयक और देशविषयक संशय को दूर करने के लिए तीसरा और चौथा गणापक्रमण है। (५-६) 'मैं सब धर्मों का सेवन करता हूँ अथवा कुछ का करता हूँ कुछ का नहीं करता। यहाँ सेवितधर्मों में विशेष दृढता प्राप्त करने के लिए तथा अनासेवित धर्मों का सेवन करने के लिए पाँचवां
और छठा गणापक्रमण है। (७) ज्ञान, दर्शन और चारित्र के लिए, अथवा दूसरे प्राचार्य के साथ सम्भोग करने के लिए गणापक्रमण किया जाता है।
ज्ञान में सूत्र अर्थ तथा उभय के लिए संक्रमण होता है। जो किसी गण से बाहर कर दिया जाता है अथवा किसी कारण से डर जाता है वह भी गणापक्रमण करता है।
(ठाणांग सूत्र ५४१) ५१६- पुरिमडूढ (दो पोरिसी) के सात आगार
सूर्योदय से लेकर दो पहर तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करना पुरिमट्ट पञ्चक्रवाण है । इस में सात आगार होते हैं- अनाभोग, सहसागार, प्रच्छन्नकाल, दिशामोह, साधुवचन, सर्वसमाधिवर्तिता और महत्तरागार ।
इन में से पहिले के छह आगारों का स्वरूप बोल नं०४८४