________________
श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला
करने वाला, चतुर्विध संघ के सञ्चालन में समर्थ तथा छत्तीस गुणों का धारक साधु आचार्य पदवी के योग्य समझा जाता है। (२) उपाध्याय - जो साधु विद्वान् हो तथा दूसरे साधुओं को पढ़ाता हो उसे उपाध्याय कहते हैं ।
(३) प्रवर्तक- आचार्य के आदेश के अनुसार वैयावच्च आदि में साधुओं को ठीक तरह से प्रवृत्त करने वाला प्रवर्तक कहलाता है। ( ४ ) स्थविर - संवर से गिरते हुए या दुखी होते हुए साधुओं को जो स्थिर करे उसे स्थविर कहते हैं । स्थविर साधु दीक्षा, वय, शास्त्रज्ञान आदि में बड़ा होता है ।
२४०
(५) गणी - एक गच्छ (कुछ साधुओं का समूह ) के मालिक को गणी कहते हैं ।
( ५ ) गणधर -- जो आचार्य की आज्ञा में रहते हुए गुरु के कथनानुसार कुछ साधुओं को लेकर अलग विचरता है उसे गणधर कहते हैं ।
(७) गणावच्छेदक- गण की सारी व्यवस्था तथा कार्यों का ख्याल करने वाला गणावच्छेदक कहलाता है ।
ठाणांग सूत्र में इनकी व्याख्या नीचे लिखे अनुसार है(१) आचार्य - प्रतिबोध, दीक्षा, या शास्त्रज्ञान आदि देने वाला । (२) उपाध्याय - सूत्रों का ज्ञान देने वाला । (३) प्रवर्तक - जो श्राचार्य द्वारा बताए गए वैयावच्च यादि धर्म कार्यों में साधुओं को प्रवृत्त करे ।
तवसंजमजोगेसु जो जोगो तस्थ तं पयहेइ । अहं च नियन्तेई गणतन्तिल्लो पवती उ ॥ अर्थात् तप, संयम और शुभयोग में से जो साधु जिसके
यद्यपि गणधर शब्द से तीर्थंकर के प्रधान शिष्य ही लिए जाते हैं किन्तु सात पदवियों में गणधर शब्द का उपरोक्त अर्थ किया गया है।
सत