________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
लिए योग्य हो उसे उसी में प्रवृत्त करने वाला, अयोग्य या कष्ट सहन करने की सामर्थ्य से हीन को निवृत्त करने वाला तथा हमेशा गण की चिन्ता में लगा हुआ साधु प्रवर्तक कहा जाता है। (४) स्थविर-प्रवर्तक के द्वाराधर्मकार्यों में लगाए हुए साधुओं के शिथिल या दुखी होने पर जो उन्हें संयम या शुभयोग में स्थिर करे उसे स्थविर कहते हैं। थिरकरणा पुण थेरो पवत्तिवावारिएसु अस्थेसु । जो जस्थ सीयइ जई संतबलो तं थिर कुणइ । अर्थात् जो प्रवर्तक के द्वारा बताए गए धर्मकर्मों में साधुओं को स्थिर करे वह स्थविर कहा जाता है। जो साधु जिस कार्य में शिथिल या दुखी होता है स्थविर उसे फिर स्थिर कर देता है।
(५) गणी- गण अर्थात् साधुओं की टोली का प्राचार्य। जो कुछ साधुओं को अपने शासन में रखता है।
(६) गणधर या गणाधिपति- तीर्थंकरों के प्रधान शिष्य गणधर कहे जाते हैं। अथवा साधुओं की दिनचर्या आदि का पूरा ध्यान रखनेवाला साधु गणधर कहा जाता है । पियधम्मे दढधम्मे संविग्गो उज्जुनो य तेयंसी। संगहुवग्गहकुसलो, सुत्तस्थविऊ गणाहिवई ।। अर्थात् जिसे धर्म प्यारा है, जो धर्म में दृढ़ है, जो संवेग वाला है, सरल तथा तेजस्वी है, साधुओं के लिए वस्त्र पात्र
आदि का संग्रह तथा अनुचित बातों के लिए उपग्रह अर्थात् रोकटोक करने में कुशल है और सूत्रार्थ को जानने वाला है वही गणाधिपति होता है। (७) गणावच्छेदक- जो गण के एक भाग को लेकर गच्छ की रक्षा के लिए आहार पानी आदि की सुविधानुसार अलग विचरता है उसे गणावच्छेदक कहते हैं।