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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह
जाता था ऐसा काम मत करो' । पाँचवें छठे और सातवें कुलकर के समय हाकार, मकार और धिक्कार तीनों प्रकार की दण्डनीतियाँथीं। छोटे अपराध के लिए हाकार, मध्यम के लिए मकार,और बड़े अपराध के लिए धिक्काररूपदण्ड दिया जाता था।
भरत चक्रवर्ती के समय बाकी के चार दण्ड प्रवृत्त हुए। कुछ लोगों का मत है, परिभाषा और मण्डलबन्ध रूप दो दण्ड ऋषभदेव के समय प्रवृत्त होगए थे, शेष दो भरत चक्रवर्ती के समय हुए।
(ठाणांग सूत्र ५५६) ५११-- आनेवाले उत्सर्पिणीकाल के सात कुलकर
आने वाले उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होंगे। इनके नाम इस प्रकार हैं
(१) मित्रवाहन, (२) सुभौम, (३) सुप्रभ, (४) स्वयम्भ, (५) दत्त, (६) सूक्ष्म और (७) सुबन्धु ।
(अगणांग सूत्र ११६) (समवायांग १५७) ५१२-- गत उत्सर्पिणीकाल के सात कुलकर __ गत उत्सर्पिणीकाल में सात कुलकर हुए थे। उनके नाम नीचे लिखे अनुसार हैं
(१) मित्रदाम, (२) सुदाम, (३) सुपार्श्व, (४) स्वयम्प्रभ, (५) विमलघोष, (६) सुघोष और (७) महाघोष।
(ठाणांग सूत्र ५५६) ५१३.. पदवियाँ सात
गच्छ, गण या संघ की व्यवस्था के लिए योग्य व्यक्ति को दिए जाने वाले विशेष अधिकार को पदवी कहते हैं । जैन संघ में साधुओं की योग्यतानुसार सात पदवियाँ निश्चित की गई हैं। (१) आचार्य- चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, द्रव्यानुयोग और गणितानुयोग इन चारों अनुयोगों के ज्ञान को धारण